________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (7) जो मित्र-भाव रखने वाले के प्रति कृतज्ञ होता है, (8) जो श्रुत प्राप्त कर मद नहीं करता, नय पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई। अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई // 11 // 12 // () जो स्खलना होने पर किसी का तिरस्कार नहीं करता, (10) जो मित्रों पर क्रोध नहीं करता, (11) जो अप्रिय मित्र की भी एकान्त में प्रशंसा करता है, कलहडमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए। हिरिमं पडिसलीणे सुविणीए त्ति वुच्चई // 11 // 13 // (12) जो कलह और हाथापाई का वर्जन करता है, (13) जो कुलीन होता है, (14) जो लज्जावान् होता है और (15) जो प्रति-संलीन (इन्द्रिय और मन का संगोपन करने वाला) होता है-वह बुद्धिमान् मुनि विनीत कहलाता है। बसे गुरुकुले निच्चं जोगवं उवहाणवं। पियंकरे पियवाई से सिक्खं लडुमरिहई // 11 // 14 // जो सदा गुरुकुल में वास करता है, जो समाधियुक्त होता है, जो उपधान (श्रुत अध्ययन के समय तप) करता है, जो प्रिय करता है, जो प्रिय बोलता है, वह शिक्षा प्राप्त कर सकता है। सक्खं खु बीसइ तवोविसेसो न वीमई जाइविसेस कोई। सोवागपुत्ते हरिएससाहू जस्सेरिसा इढि महाणुभागा // 12 // 37 // __ यह प्रत्यक्ष ही तप की महिमा दीख रही है, जाति की कोई महिमा नहीं है। जिसकी ऋद्धि ऐसी महान् (अचिन्त्य शक्ति सम्पन्न) है, वह हरिकेश मुनि चाण्डाल का पुत्र है। किं माहणा ! जोइसमारभन्ता उदएण सोहिं बहिया विमग्गहा / जं मग्गहा बाहिरियं विसोहिं न तं सुदिटुं कुसला वयन्ति // 12 // 38 // ___ मुनि ने कहा-ब्राह्मणो ! अग्नि का समारम्भ ( यज्ञ ) करते हुए तुम बाहर से (जल से) शुद्धि की क्या माँग कर रहे हो ? जिस शुद्धि की बाहर से माँग कर रहे हो, उसे कुशल लोग सुदृष्ट (सम्यग् दर्शन) नहीं करते /