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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 10 परिभाषा-पद 465 'ग्राम, नगर, राजधानी, निगम, आकर, पल्ली, खेड़ा, कर्वट, द्रोणमुख, पत्तन, मण्डप, संबाध, आश्रम-पद, विहार, सन्निवेस, समाज, घोष, स्थली, सेना का शिविर, सार्थ, संवर्त, कोट, पाड़ा, गलियाँ, घर–इनमें अथवा इस प्रकार के अन्य क्षेत्रों में से पूर्व निश्चय के अनुसार निर्धारित क्षेत्र में भिक्षा के लिए जा सकता है। इस प्रकार यह क्षेत्र से अवमौदर्य तप होता।' 30. काल-अवमौदर्य (30 / 20,21) दिवसस्स पोरुसीणं चउण्हं पि उ जत्तिओ भवे कालो। एवं चरमाणो खलु कालोमाणं मुणेयव्यो // 30 // 20 // अहवा तइयाए पोरिसीए ऊणाइ घासमेसन्तो। चउभागूणाए वा एवं कालेण ऊ भवे // 30 // 21 // 'दिवस के चार प्रहरों में जितना अभिग्रह-काल हो उसमें भिक्षा के लिए जाऊँगा, अन्यथा नहीं-इस प्रकार चर्या करने वाले मुनि के काल से अवमौदर्य तप होता है। अथवा कुछ न्यून तीसरे प्रहर ( चतुर्थ भाग आदि न्यून प्रहर ) में जो भिक्षा की एषणा करता है, उसे (इस प्रकार) काल से अवमौदर्य तप होता है।' 31. भाव-अवमौदर्य (30 / 22,23) इत्थी वा पुरिसो वा अलंकिओ वाऽणलंकिओ वा वि / अन्नयरवयत्थो वा अन्नयरेणं व वत्थेणं // 30 // 22 // अन्नेण विसेसेणं वण्णेणं भावमणुमुयन्ते उ / एवं चरमाणो खलु भावोमाणं मुणेययो // 30 // 23 // ___ 'स्त्री अथवा पुरुष, अलंकृत अथवा अनलंकृत, अमुक वय वाले, अमुक वस्त्र वाले– . अमुक विशेष प्रकार की दशा, वर्ण या भाव से युक्त दाता से भिक्षा ग्रहण करूँगा, अन्यथा नहीं-इस प्रकार चर्या करने वाले मुनि के भाव से अवमौदर्य तप होता है।' 32. पर्यवचरक (30 / 24) दव्वे खेसे काले भावम्मि य आहिया उ जे भावा। एएहि ओमचरओ पज्जवचरओ भवे भिक्खू // 'द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव में जो पर्याय ( भाव ) कहे गए हैं, उन सबके द्वारा अवमौदर्य करने वाला भिक्षु पर्यवचरक होता है / '
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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