________________ 464 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन 25. संक्षेप-रुचि (28 / 26) अणभिग्गहियकुदिट्ठो संखेवरुइ त्ति होइ नायव्यो। अविसारओ पवयणे अणभिग्गहिरो य सेसेसु // 'जो जिन-प्रवचन में विशारद नहीं है और अन्यान्य प्रवचनों का अभिज्ञ भी नहीं है, किन्तु जिसे कुदृष्टि का आग्रह न होने के कारण स्वल्य ज्ञान मात्र से जो तत्त्व-श्रद्धा प्राप्त होती है, उसे संक्षेप-रुचि जानना चाहिए।' 26. धर्म-रुचि (28 / 27) जो अस्थिकायधम्म सुयधम्म खलु चरित्तधम्मं च / सद्दहइ जिणाभिहियं सो धम्मरुइ ति नायव्वो // 'जो जिन-प्ररूपित अस्तिकाय-धर्म, श्रुत-धर्म और चारित्र-धर्म में श्रद्धा रखता है, उसे धर्म-रुचि जानना चाहिए।' 27. चारित्र (28 / 33) ___ चयरित्तकरं चारितं। 'जो कर्म संचय को रिक्त करता है, उसे चारित्र कहते हैं।' 28. द्रव्य-अवमौदर्य (30 / 15) जो जस्स उ आहारो तत्तो ओमं तु जो करे। . जहन्नेणेगसित्थाई एवं दव्वेण ऊ भवे // 'जिसका जितना आहार है, उससे कम खाता है, कम से कम एक सिक्थ ( धान्य कण) खाता है और उत्कृष्टतः एक कवल कम खाता है, वह द्रव्य से अवमौदर्य तप होता है।' 29. क्षेत्र-अवमौदर्य (30 / 16-18) गामे नगरे तह रायहाणि निगमे य आगरे पल्ली। खेडे कब्बडदोणमुह पट्टणमडम्बसंबाहे // 30 // 16 // आसमपए विहारे सन्निवेसे समायघोसे य / थलिसेणासन्धारे सत्थे संवट्टकोट्टे य॥३०॥१७॥ वाडेसु व रच्छासु व घरेसु वा एवमित्तियं खेत्तं / कप्पइ उ एवमाई एवं खेत्तेग ऊ भवे // 30 // 18 //