________________ खण्ड 2, प्रकरण :10 परिभाषा-पद 19. आज्ञा-रुचि (28 / 20) रागो दोसो मोहो अन्नाणं जस्स अवगयं होइ। आणाए रीयंतो सो खलु आणारई नाम // _ 'जो व्यक्ति राग, द्वेष, मोह और अज्ञान के दूर हो जाने पर वीतराग की आज्ञा में रुचि रखता है, वह आज्ञा-रुचि है।' 20. सूत्र-रुचि (28 / 21) जो सुत्तमहिज्जन्तो सुएण ओगाहई उ सम्मत्तं / __ अंगेण बाहिरेण व सो सुत्तरुइ त्ति नायवो // ___ 'जो अङ्ग-प्रविष्ट या अङ्ग-बाह्य सूत्रों को पढ़ता हुआ सम्यक्त्व पाता है, वह सूत्ररुचि है।' 21. बीज-रुचि (28 / 22) एगेणं अणेगाइं पयाई जो पसरई उ सम्मत्तं / उदए व्व तेल्लबिन्दू सो बीयरुइ त्ति नायव्वो // ___ 'पानी में डाले हुए तेल को बूंद की तरह जो सम्यक्त्व ( रुचि ) एक पद (तत्त्व) से अनेक पदों में फैलता है, उसे बीज-रुचि जानना चाहिए।' 22. अभिगम-रुचि (28 / 23) सो होइ अभिगमरुई सुयनाणं जेण अत्थओ विटुं / एक्कारस' अंगाइं पइण्णग दिट्ठिवाओ य // 'जिसे ग्यारह अङ्ग, प्रकीर्णक और दृष्टिवाद आदि श्रुत-ज्ञान अर्थ-सहित प्राप्त हैं, वह अभिगम-रुचि है।' 23. विस्तार-रुचि (28 / 24) दव्वाण सव्वभावा सव्वपमाणे हि जस्स उवलद्धा। सव्वाहि नयविहीहि य वित्याररुइ ति नायव्वो॥ - 'जिसे द्रव्यों के सब भाव, सभी प्रमाणों और सभी नय-विधियों से उपलब्ध हैं, वह विस्तार-रुचि है।' 24. क्रिया-रुचि (28 / 25) दसणनाणचरिते तवविणए सच्चसमिइगुत्तीसु / जो किरियाभावरुई सो खलु किरियाई नाम // 'दर्शन, ज्ञान, चारित्र, तप, विनय, सत्य, समिति, गुप्ति आदि क्रियाओं में जिसकी वास्तविक रुचि है, वह क्रिया-रुचि है।'