________________ 460 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन 2. अविनीत (1 / 3;11 / 6-9) आणाऽनिद्देसकरे गुरूणमणुववायकारए। पडिणीए असंबुद्धे 'अविणीए त्ति' वुच्चई // 1 // 3 // 'जो गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन नहीं करता, जो गुरु की शुश्रूषा नहीं करता, जो गुरु के प्रतिकूल वर्तन करता है और जो तथ्य को नहीं जानता, वह अविनीत है।' अह चउदसहिं ठाणेहिं वट्टमाणे उ संजए। अविणीए वुच्चई सो उ निव्वाणं च न गच्छइ // 11 // 6 // अभिक्खणं कोही हवइ पबन्धं च पकुव्बई। मेत्तिज्जमाणे वमइ सुयं लभ्रूण मज्जई // 11 // 7 // अवि पावपरिक्खेवी अवि मित्तेसु कुप्पई। सुप्पियस्सावि मित्तस्स रहे भासइ पावगं // 11 // 8 // पइण्णवाई दुहिले थद्धे लुद्धे अणिग्गहे। असंविभागी अचियत्ते अविणीए त्ति वुच्चई // 11 // 9 // 'जो बार-बार क्रोध करता है, जो क्रोध को टिका कर रखता है, जो मित्र-भाव रखने वाले को भी ठुकराता है, जो श्रुत प्राप्त कर मद करता है, जो किसी की स्खलना होने पर उसका तिरस्कार करता है, जो मित्रों पर कुपित होता है, जो अत्यन्त प्रिय मित्र की भी एकान्त में बुराई करता है, जो असंबद्ध-भाषी है, जो द्रोही है, जो अभिमानी है, जो सरस आहार आदि में लुब्ध है, जो अजितेन्द्रिय है, जो असंविभागी है और जो अप्रीतिकर है, वह अविनीत है।' 3. शिक्षाशील (11 / 4,5) अह अट्ठहिं ठाणेहिं सिक्खासीले ति बुच्चई / अहस्सिरे सया दन्ते न य मम्ममुदाहरे // 11 // 4 // नासीले न विसीले न सिया अइलोलुए। . अकोहणे सच्चरए सिक्खासीले त्ति वुच्चई // 11 // 5 // 'जो हास्य नहीं करता, जो दान्त है, जो मर्म का प्रकाशन नहीं करता, जो चरित्र से हीन नहीं है, जिसका चरित्र कलुषित नहीं है, जो अति लोलुप नहीं है, जो क्रोध नहीं करता, जो सत्य में रत है, वह शिक्षाशील कहा जाता है।'