________________ प्रकरणः दसवाँ परिभाषा-पद आगम-साहित्य में वस्तु-बोध कराने की पद्धतियाँ दो हैं- वर्णनात्मक और प्रकारात्मक / तीसरी पद्धति है-परिभाषात्मक / किन्तु यह क्वचित्-क्वचित् ही मिलती है। उत्तराध्ययन में तीनों पद्धतियाँ प्राप्त हैं। प्रथम दो मुख्य पद्धतियाँ बहु-व्याप्त हैं, इसलिए उनका पृथक निर्देश आवश्यक नहीं लगता। यहाँ हम केवल परिभाषात्मक पद्धति का निर्देश करना चाहेंगे। वह निर्देश-संग्रह स्वयं एक परिभाषा-पद बन जायगा। उसका अध्ययन हमारे अनेक शाखीय अध्ययन में आलोक भरता है, इसलिए उस पद का संकलन यहां उपयोगी होगा। 1. विनीत (1 / 2;11 / 10-13) अणानिद्देसकरे गुरूणमुववायकारए / इंगियागारसंपन्ने से 'विणीए त्ति' बुच्चई // 1 // 2 // 'जो गुरु की आज्ञा और निर्देश का पालन करता है, गुरु की शुश्रूषा करता है, गुरु के इंगित और आकार को जानता है, वह विनीत है।' अह पन्नरसहिं ठाणेहिं सुविणीए त्ति वुच्चई। नीयावत्ती अचवले अमाई अकुऊहले // 11 // 10 // अप्पं चाऽहिक्खिवई पबन्धं च न कुम्बई। मेत्तिज्जमाणो भयई सुयं लद्भु न मज्जई // 11 // 12 // न य पावपरिक्खेवी न य मित्तेसु कुप्पई। अप्पियस्सावि मित्तस्स रहे कल्लाण भासई // 11 // 12 // कलहडमरवज्जए बुद्धे अभिजाइए / हिरिमं पडिसंलोणे सुविणीए ति वुच्चई // 1 // 13 // _'जो नम्र-व्यवहार करता है, जो चपल और मायावी नहीं होता, जो कुतूहल नहीं करता, जो दूसरों का तिरस्कार नहीं करता, जो क्रोध को टिका कर नहीं रखता, जो मित्र-भाव रखने वाले के प्रति कृतज्ञ होता है, जो श्रुत प्राप्त कर मद नहीं करता, जो स्खलना होने पर दूसरों का तिरस्कार नहीं करता, जो मित्रों पर क्रोध नहीं करता, जो अप्रिय मित्र की भी एकान्त में प्रशंसा करता है, जो कलह और हाथापाई नहीं करता, जो कुलीन और लज्जालु होता है और जो प्रतिसंलीन होता है, वह विनीत है।'