________________ 187 खण्ड 2, प्रकरण : व्याकरण-विमर्श 10 / 1 पंडुयए यह आर्ष-प्रयोग है / इसका संस्कृत रूप है 'पाण्डुरकम्' / (333) 10 / 16 मिलेक्खुया यह 'मिलिच्छा' के स्थान पर अर्धमागधी का प्रयोग है। 10 // 31 देसिय यह प्रयोग 'देसय' (सं० देशकः) के स्थान पर हुआ है / (340) 12 / 6 कयरे यहाँ 'एकार' प्राकृत लक्षण से हुआ है / (358) 12 / 10 जायणजीविणु त्ति यहाँ 'जीविणु' के 'वि' में इकार का प्रयोग आर्ष है / (360) 12 / 24 वेयावडिययाए यहाँ अट्टयाए' में 'या' का प्रयोग स्वार्थ में हुआ है / (365) 17 / 20 विसमेव . यहाँ 'एव' का प्रयोग 'इव' के अर्थ में हुआ है। 18 / 32 ताई यहाँ 'ई' का प्रयोग छन्दपूर्ति के लिए हुआ है और 'ता' को सौत्रिक मान इसको 'तत्' अर्थवाची माना है / (446) 18 / 38 'भारह' . यहाँ प्राकृत व्याकरण के अनुसार 'त' का 'ह' हुआ है / (448) 1850 अद्दाय __ यह आर्ष-प्रयोग है। 16164 उल्लिओ यहाँ उल्लिहिओ (सं० उल्लिखितः) के स्थान पर आर्ष-प्रयोग है / (460) 1968 महं * * महतीं' के स्थान पर ऐसा प्रयोग हुआ है / (466) 10 / 48 दुरप्पा - यह दुरप्पया (सं० दुरात्मता) के स्थान पर आर्ष-प्रयोग है / (476) 22 / 12 गगणं फुसे यह प्रयोग 'गगणं फुसा' के स्थान पर हुआ है। 22 / 18,16 जिय यह प्रयोग जीव के अर्थ में हुआ है। ह्रस्वीकरण छन्द की दृष्टि से किया गया है।