________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन 2 / 10 समरेव यहाँ 'रकार' अलाक्षणिक है। वास्तव में यहाँ 'सम एव' चाहिए था। . प्रतीत होता है कि लिपिकर्ता के दोष से 'ए' के स्थान पर 'र' लिख दिया गया हो। 2 / 36,15 / 16 अणुक्कसाई इसके संस्कृत रूपान्तर दो बनते हैं-(१) 'अनुत्कशायी' (2) 'अनुकषायी'। 'क' का द्वित्व प्रयोग प्राकृत के अनुसार मानने पर इसका रूप 'अणुक्कसाई' .. होता है / (124) 2040 से मगध देश के अनुसार इसका अर्थ 'अथ' होता था। (126) पहाणाए 'पहाणीए' के स्थान में यह आर्ष-प्रयोग है। 3 / 13 कम्मुणो यह 'कम्मस्स' के स्थान पर अर्धमागधी का प्रयोग है। 3 / 13 पाढवं यह संस्कृत पार्थिव के इकार का लोप किया गया है।' 3 // 14 विसालिसेहिं यह मागधदेशीय भाषा का प्रयोग है / (187) 317 ) दासपोरुषं 65 'पोरुसेय' के स्थान पर 'पोरुस' का प्रयोग सौत्रिक है / (188) 5 / 10 / 10 कायसा यह सौत्रिक प्रयोग है / (246, 264) 5 / 20 गारत्था सौत्रिक प्रयोग के कारण यहाँ आदि के 'अ' का लोप हुआ है / (246) 5 / 21 नगिणिणं जडी ये प्राचीन प्रयोग हैं। इनको उपचार से भाववाची 'नाग्य' और 'जटीत्व' मानकर अर्थ किया गया है / (250) अज्झत्थं यहाँ मूल शब्द 'अज्झत्तत्थं' (सं० अध्यात्मस्थं) है। 'तकार' का लोप करने पर अज्झत्थं रूप निष्पन्न हुआ है। 9 / 55 वाहिं यह आर्ष-प्रयाग है / (318)