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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 सभ्यता और संस्कृति (e) सामवेद, (10) अथर्ववेद, (11) मीमांसा, (12) न्याय, (13) पुराण और (14) धर्मशास्त्र / ' बहत्तर कलाओं के शिक्षण का भी प्रचलन थ।।२ व्यसन ___ मानव-स्वभाव की दुर्बलता सदा रही है। उससे प्रभावित मनुष्य व्यसनों के जाल में फंसता रहा है / विलास और अज्ञान ने मनुष्य को सदा इस ओर प्रवृत्त किया है। शंखपुर नगर का राजकुमार अगडदत्त सभी व्यसनों में प्रवीण था। वह मद्य पीता था, जुआ खेलता था, मांस तथा मधु का भक्षण करता था और नट-समूह तथा वेश्यावृन्द से घिरा रहता था। मद्यपान बहुत मात्रा में प्रचलित था। मद्य के अनेक प्रकार थे (1) मधु-. महुआ की मदिरा / (2) मैरेय- सिरका / (3) वारुणी-प्रधान सुरा। (4) मृद्वीका- द्राक्षा की मदिरा। (5) खजूरा- खजूर की मदिरा। क्रूरता और खाद्य-लोलुपता विपुल मात्र में थी। लोग भैंस का मांस खा लेते थे। पितरों को मांस और मदिरा की बलि दी जाती थी। शिवभूति नामक सहस्रमल्ल को राजा ने कहा- "श्मशान में जाकर कृष्ण-चतुर्दशी के दिन बलि देकर आओ।" उसने मदिरा और पशुओं की बलि दी और पशु को वहीं पकाकर खा गया / १-बृहद्वृत्ति, पत्र 523 / २-सुखबोधा, पत्र 218 / ३.-वही, पत्र 84 : - मज्जं पिएइ जूयं रमेइ पिसियं महुं च भक्खेइ / नडपेडय-वेसाविंद-परिगओ भमइ पुरमज्झे // ४-बृहद्वृत्ति, पत्र 654 / ५-वही, पत्र 52 / . ६-सुखबोधा, पत्र 75 : बच्च माइघरे सुसाणे कण्हचउद्दसीए बलिं देहि / सुरा पसुओ य दिण्णो / ... . सो गंतूण माइबलिं दाऊण 'छुहिओ मि' ति तत्थेव सुसाणे तं पसुं पउलेत्ता खाइ। 55
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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