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________________ 434 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन मल्ल-विद्या मल्ल-विद्या का व्यवस्थित शिक्षण दिया जाता था। जो व्यक्ति यह विद्या सीखना / चाहता, उसे पहले वमन और विरेचन कराया जाता। कई दिनों तक उसे खाने के लिए पौष्टिक तत्त्व दिए जाते और धीरे-धीरे उसे मल्ल-विद्या का अभ्यास कराया जाता था। मल्ल प्रायः राज्याश्रित रहते थे। स्थान-स्थान पर दंगल होते और जो मल्ल जीतता उसे 'पताका' दी जाती थी। उज्जनी में अट्टण नामका एक मल्ल था। वह दुर्जेय था। वह 'सोपारक' नगर में प्रतिवर्ष जाता और वहाँ के मल्लों को हराकर पंताका ले आता . था।' मल्लयुद्ध तब तक चलता जब तक हार-जीत का निर्णय नहीं हो जाता / एक बार एक राजा ने मल्लयुद्ध आयोजित किया। पहले दिन न कोई हारा, न कोई जीता / दूसरे दिन दोनों सम रहे। तीसरे दिन एक हारा, एक जीता। दंगल में विभिन्न दाँव-पेच भी प्रयुक्त होते थे। एक दिन का दंगल पूरा हो जाने पर मल्लों को दूसरे दिन के लिए तैयार करने के लिए संमर्दक लोग नियुक्त किए जाते थे, जो तेल आदि से मालिश कर मल्लों को तैयार करते थे। कई मल्ल हार जाने पर कुछ महीनों तक रसायन आदि का सेवन कर पुनः बलिष्ठ हो दंगल के लिए तैयार होते थे। रोग और चिकित्सा - उस समय के मुख्य रोग हैं श्वास, खाँसी, ज्वर, दाह, उदरशूल, भगंदर, अर्श, अजीर्ण, दृष्टिशूल, मुशूलख, अरुचि, अक्षिवेदना, खाज, कर्णशूल, जलोदर और कोढ / 5 उस समय चिकित्सा की कई पद्धतियाँ प्रचलित थीं। उनमें आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति सर्वमान्य थी। पंचकर्म-वमन, विरेचन, आदि का भी विपुल प्रचलन था / 6 १-बृहद्वृत्ति, पत्र 192 / २-वही, पत्र 192,163 / ३-वही, पत्र 163 / ४-वही, पत्र 193 / ५-सुखबोधा, पत्र 163 : सासे खासे जरे डाहे, कुच्छिसूले भगंदरे / अरिसा अजीरए ट्ठिी-मुहसूले अरोयए // अच्छिवेयण कंडू य, कन्नवाहा जलोयरे / कोढे एमाइणो रोगा, पीलयंति सरीरिणं॥ ६-उत्तराध्ययन, 158 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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