________________ खण्ड 2, प्रकरण : 5 निरुक्त 407 (1) काल-बाह्य संयोग- दिन में पैदा होने वाला 'दिनज' और रजनी में पैदा होने वाला 'रजनीज' कहलाता है। (2) तदुभय संयोग- (क) द्रव्य क्रोधी-दण्ड रखने वाला क्रोधी होता है। (ख) क्षेत्र क्रोधी-मालव और सुराष्ट्र में रहने ____वाला क्रोधी होता है। (ग) काल क्रोधी-वसन्त में पैदा होने वाला या वसन्त में क्रोधी होता है।' उपर्युक्त निक्षेप में चूर्णिकार और बृहद्वृत्तिकार-दोनों ने बहुत विस्तार से अनेक अवान्तर भेदों का उल्लेख किया है। हमने केवल संक्षेप में उनका विवरण प्रस्तुत किया है। २-निरुक्त निरुक्त का अर्थ है-शब्दों की व्युत्पत्ति-परक व्याख्या। इस पद्धति में शब्द का मूलस्पर्शी अर्थ ज्ञात हो सकता है / आगम के व्याख्यात्मक-साहित्य में इस पद्धति से शब्दों पर बहुत विचार हुआ है। उनकी छान-बीन से शब्द की वास्तविक प्रकृति को समझने में बहुत सहारा मिलता है और अर्थ सही रूप में पकड़ा जाता है। उत्तराध्ययन चूर्णि में अनेक निरुक्त दिये गये हैं। उनका संकलन शब्द-बोध में सहायक है। उत्तराध्ययन चूर्णि के कुछ निरूक्त ये हैं : पण्डित- पापाड्डीनः पण्डितः / (पृ. 28) ऽस्य जातेति पण्डितः / (पृ० 40) क्षुद्र- क्षणतीति क्षुद्रः / / कल्याण-- कल्यं आनयतीति कल्याणम् / (पृ० 41) ववहार- विविहं वा पहरणं विविधो वा अपहारः ववहारः / (पृ० 43) आतुर- अत्यर्थ तरतीत्यातुरः / मेधावी- मेरया धावतीति मेधावी। (पृ० 57) नाग- नास्य किञ्चिदगम्यं नागः / (पृ० 56) . संग्राम- समं असत इति संग्रामः / (पृ० 56) नमन्तं ग्रसतीति संग्रामः / (पृ० 184) १-(क) उत्तराध्ययन चूणि, पृ० 21-24 / (ख) बृहद्वृत्ति, पत्र 20-40 /