________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन (इसको) (वह राजा) इस (विद्वान् के आगमन) को अपने लिए कल्याणकारी माने / ऐसा (करने से) क्षेत्र तथा राष्ट्र के प्रति अपराध नहीं करता।' ____ यदि किसी के घर ऐसा विद्वान् व्रात्य अतिथि आ जाए (तो) स्वयं उसके सामने जाकर कहे, व्रात्य, आप कहाँ रहते हैं ? व्रात्य (यह) जल ( ग्रहण कीजिए ) व्रात्य (मेरे घर के लोग आपको भोजनादि से) तृप्त करें। जैसा आपको प्रिय हो, जैसी आपकी इच्छा हो, जैसी आपकी अभिलाषा हो, वैसा ही हो अर्थात् हम लोग वैसा ही करें। __ (वात्य से) यह जो प्रश्न है कि व्रात्य आप कहाँ रहते हैं, इस (प्रश्न) से (ही) वह देवयान मार्ग को (जिससे पुण्यात्मा स्वर्ग को जाते हैं) अपने वश में कर लेता है। इससे जो यह कहता है व्रात्य यह जल ग्रहण कीजिए इससे अप (जल या कर्म) अपने वश में कर लेता है। __यह कहने से व्रात्य (मेरे घर के लोग आपको भोजनादि से) तृप्त करें, अपने आपको चिरस्थायी (अर्थात् दीर्घजीवी) बना लेता है / / जिसके घर में विद्वान् व्रात्य एक रात अतिथि रहे, वह पृथ्वी में जितने पुण्य-लोक हैं उन सबको वश में कर लेता है। जिसके घर में विद्वान् व्रात्य दूसरी रात अतिथि रहे, वह अन्तरिक्ष में जो पुण्य-लोक हैं, उन सबको वश में कर लेता हैं / जिसके घर में विद्वान् व्रात्य तीसरी रात अतिथि रहे, वह जो द्युलोक में पुण्य-लोक हैं उन सबको वश में कर लेता है। १-अथर्ववेद, 1 // 2 // 3 // 1,2 : तद् यस्यैवं विद्वान् वात्यो राज्ञोऽतिथिहानागच्छेत् / श्रेयांसमेनमात्मनो मानयेत् तथा क्षत्राय ना वृश्चते तथा राष्ट्राय ना वृश्चते / २-वही, 15 / 2 / 4 / 1,2 : तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्योऽतिथिगृहानागच्छेत् / / स्वयमेनमभ्युदेत्य ब याद् व्रात्य क्वाऽवात्सी: व्रात्योदकं व्रात्य तर्पयन्तु व्रात्य यथा ते प्रियं तथास्तु व्रात्य यथाते वशस्तथास्तु व्रात्य यथा ते निकामस्तथा स्त्विति। ३-वही, 15 / 2 / 4 / 3 : यदेनमाह व्रात्य क्वाऽवात्सीरिति पथ एव तेन देवयानानव रूद्ध। ४-वही, 15 / 2 / 4 / 4,5: यदेनमाह व्रात्योदकमित्यप एव तेनाव रुन्छे / यदेनमाह वात्य तपयन्त्विति प्राणमेव तेन वर्षीयांसं कुरुते //