________________ खण्ड : 1 प्रकरण : 1 २-श्रमण-संस्कृति का प्राग-ऐतिहासिक अस्तित्व 15 जिसके घर में विद्वान् व्रात्य चौथी रात अतिथि रहे, वह पुण्य-लोकों से श्रेष्ठ पुण्यलोकों को वश में कर लेता है। जिसके घर में विद्वान् व्रात्य अपरिमित (बहुधा) अतिथि रहे, वह अपरिमित पुण्यलोकों को अपने वश में कर लेता है।' ____ इन सूत्रों से जो प्रतिपादित है, उसका सम्बन्ध परमात्मा से नहीं किन्तु किसी देहधारी व्यक्ति से है। ___ व्रात्य-काण्ड में प्रतिपादित विषय की भगवान् ऋषभ के जीवन-व्रत से तुलना होती है। वे दीक्षित होने के बाद एक वर्ष तक तपस्या में स्थिर रहे थे। एक वर्ष तक भोजन न करने पर भी शरीर में पुष्टि और दीप्ति को धारण कर रहे थे। मुनियों की चर्या को धारण करने वाले भगवान् जिस-जिस ओर कदम रखते थे अर्थात् जहाँ-जहाँ जाते थे, वहीं-वहीं के लोग प्रसन्न होकर और बड़े संभ्रम के साथ आकर उन्हें प्रणाम करते थे। उनमें से कितने ही लोग कहने लगते थे- "हे देव ! प्रसन्न होइए और कहिए कि क्या काम है ?"3 १-अथर्ववेद, 15 / 2 / 6 / 1-10 : तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्य एकां रात्रिमतिथिगृहे वसति / ये पृथिव्यां पुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे // तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्यो द्वितीयां रात्रिमतिथि हे वसति / येऽन्तरिशे पुण्या लोका स्तानेव तेनाव रुन्द्धे // तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्यस्तृतीयां रात्रिमतिथिग हे वसति / ये दिवि पुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे // तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्यश्चतुर्थी रात्रिमतिथिग हे वसति / ये पुण्यानां पुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुद्धे / तद् यस्यैवं विद्वान् व्रात्योऽपरिमिता रात्रिरतिथिग हे वसति / य एवापरिमिताः पुण्या लोकास्तानेव तेनाव रुन्द्धे // २-महापुराण, 20 / 95 : हायशनेऽप्यङ्ग, पुष्टिं दीप्तिञ्च बिभ्रते। ३-वही, 20 / 14,15 यतो यतः पदं धत्ते, मौनी चर्या स्म संश्रितः / ततस्ततो जनाः प्रीताः, प्रणमन्त्येत्य सम्भ्रमात् // प्रसीद देव ! किं कृत्यमिति केचिजगुर्गिरम् /