________________ 384 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन / योजन लम्बा था। इसके चारों ओर पत्थर का प्राकार था। ऐसा भी उल्लेख है कि इसका प्राकार सोने का था। इसके ईशान कोण में रेवतक . पर्वत था। इसके दुर्ग की लम्बाई तीन योजन थी। एक-एक योजन पर सेनाओं के तीन-तीन दलों की छावनी थी। प्रत्येक योजन के अन्त में सौ-सौ द्वार थे। इन सब तथ्यों के अध्ययन से यह निष्कर्ष निकलता है कि प्राचीन द्वारका रेवतक पर्वत के पास थी। रैवतक पर्वत सौराष्ट्र में आज भी विद्यमान है। संभव है कि प्राचीन . द्वारका इसी की तलहटी में बसी हो और पर्वत पर एक संगीन दुर्ग का निर्माण हुआ हो / __भागवत और विष्णुपुराण में उल्लेख है कि जब कृष्ण द्वारका को छोड़ कर चले गए तब वह समुद्र में डूब गई। केवल कृष्ण का राज-मन्दिर बचा रहा।" जैन-ग्रन्थों में भी उसके डब जाने की बात मिलती है। . जैन-ग्रन्थों में उल्लेख है कि एक बार कृष्ण ने भगवान् अरिष्टनेमि से द्वारका-दहन के विषय में प्रश्न पूछा / उस समय अरिष्टनेमि पल्हव देश में थे। अरिष्टनेमि ने कहा"वारह वर्ष के बाद द्वीपायन ऋषि के द्वारा इसका दहन होगा।" द्वीपायन परिव्राजक ने यह बात लोगों से सुनी। 'मैं द्वारका-दहन का निमित्त न बनें'-यह सोच वह उत्तरापथ में चला गया। काल की गणना ठीक न कर सकने के कारण वह बारहवं वर्षद्वारका में आया। यादवकुमारों ने उसका तिरस्कार किया। निदान-अवस्था में मर कर वह देव बना और उसने द्वारका को भस्म कर डाला। . द्वारवती-दहन से पूर्व एक बार फिर अरिष्टनेमि रैवतक पर्वत पर आए थे। जब द्वारवती का दहन हुआ तब वे पल्हव देश में थे। श्रावस्ती ___ यह कोशल राज्य की राजधानी थी। इसकी आधुनिक पहचान सहेट-महेट से की गई है। इसमें सहेट गोंडा जिले में और महेट बहराइच जिले में है। महेट उत्तर में है १-ज्ञाताधर्मकथा, पृ० 99,101 / २-बृहत्कल्प, भाग 2, पृ० 251 / ३-ज्ञाताधर्मकथा, पृ० 99 / ४-महाभारत, सभापर्व, 14 / 54-55 / ५-भागवत, 11 / 31 / 23 ; विष्णुपुराण, 5 // 27 // 36 / ६-सुखबोधा, पत्र 39-40 / ७-दशवकालिक, हारिभद्रीय वृत्ति, पत्र 36-37 / ८-सुखबोधा, पत्र 38 /