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________________ २-श्रमण-संस्कृति का प्राग-ऐतिहासिक अस्तित्व आर्य लोग हिन्दुस्तान में आए उससे पहले यहाँ एक ऊंची सभ्यता, संस्कृति और धर्म-चेतना विद्यमान थी। वह वैदिक परम्परा नहीं थी। यह मोहनजोदड़ो और हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त ध्वंसावशेषों से प्रमाणित हो चुका है। पुरातत्त्वविदों के अनुसार जो अवशेष मिले हैं, उनसे वैदिक धर्म का कोई सम्बन्ध नहीं है। उनका सम्बन्ध श्रमण-संस्कृति से है। अतः यह प्रमाणित होता है कि आर्यो के आगमन से पूर्व यहाँ श्रमण-संस्कृति विकसित अवस्था में थी। इस तथ्य की संपुष्टि के लिए हम साहित्य और पुरातत्त्व दोनों का अवलम्बन लेंगे। भारतीय साहित्य में वेद बहुत प्राचीन माने जाते हैं। उनमें तथा उनके पार्श्ववर्ती ग्रन्थों में आए हुए कुछ शब्द-वातरशन-मुनि, वातरशन-श्रमण, केशी, व्रात्य और अर्हन्श्रमण-संस्कृति को प्राग-ऐतिहासिकता के प्रमाण हैं। वातरशन-मुनि-वातरशन-श्रमण ऋग्वेद में वातरशन-मुनि का प्रयोग मिलता है मुनयो वातऽरशनाः पिशंगा वसते मला / वातस्यानु ध्राजिम् यन्ति यद्देवासो अविक्षत // ' इसी प्रकरण में 'मौनेय' शब्द भी प्रयुक्त हुआ है। वातरेशन-मुनि अपनी 'मौनेय' की अनुभूति में कहता है-"मुनिभाव से प्रमुदित होकर हम वायु में स्थित हो गए हैं। मर्यो ! तुम हमारा शरीर मात्र देखते हो।"२ तैत्तिरीयारण्यक में श्रमणों को 'वातरशन-ऋषि' और 'ऊर्ध्वमन्थी' कहा गया है वातरशना हवा ऋषयः श्रमणा ऊर्ध्वमन्थिनो बभूवुः / ये श्रमण भगवान् ऋषभ के ही शिष्य हैं / श्रीमद्भागवत में ऋषभ को जिन श्रमणों के धर्म का प्रवर्तक बताया गया है, उनके लिए ये ही विशेषण प्रयुक्त किए गए हैं १-ऋग्वेद, 10 / 11 / 136 / 2 / २-वही, 10 / 11 / 136 / 3 : उन्मदिता मौनेयन वाताँ आ तस्थिमा वयम् / शरीरेदस्माकं यूयं मर्तासो अभि पश्यथ // ३-तैत्तिरीयारण्यक, 2071, पृ० 137 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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