________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 'मैं देखता हूँ कि हास-विलास-युक्त, मस्त, केतक पुष्प के समान विशाल नेत्रों वाली कुमारी को, जिसने काम भोगों को नहीं भोगा है, प्रथम-आयु में ही मृत्यु के कर चल देती है।' ___ 'उसी प्रकार कुलीन, सुन्दर, सुदर्शन, स्वर्ण-वर्ण, तरुण को जिसकी दाढ़ी केसर की तरह बिखरी है, लेकर चल देती है। इसलिए मैं काम-भोगों तथा घर को छोड़कर प्रव्रजित होना चाहता हूँ / आप मुझे अनुज्ञा दें।' इस प्रकार कह, 'और आप रहें, आपके साथ बातचीत करते ही करते व्याधि, जरा मरण आदि आ पहुंचते हैं' कह कर उसने दोनों को प्रणाम किया। फिर योजन भर जनता को अनुयाई बना, निकलकर, गंगा-तट पर ही जा पहुंचा। हस्तिपाल ने उसे भी आकाश में बैठकर धर्मोपदेश दिया। 'बड़ा जन-समूह एकत्र होगा' सुन वह भी वहीं बैंठ गया। फिर अगले दिन पालथी मारे बैठे पुरोहित ने सोचा-मेरे पुत्र प्रवजित हो गए अब मैं अकेला ही मनुष्य रूपी ,ठ हो कर रह गया हूँ। मैं भी प्रवजित होऊँगा। यह सोच उसने ब्राह्मणी के साथ विचार-विमर्श करते हुए यह गाथा कहो साखाहि रुखो लभते समजं पहीनसाखं पन खानुं आहु, पहीनपुत्तस्स ममज्ज होति वासेट्टि भिक्खाचरियाय कालो // 15 // . 'शाखा सहित होने से ही पेड़ को वृक्ष कहते हैं। शाखा-रहित पेड़ ठूठ कहलाता है। हे वासेट्ठि ! इस समय मैं पुत्र-विहीन हूँ। इसलिए यह मेरा प्रवजित होने का समय है।' यह कहकर उसने ब्राह्मणों को बुलबाया। साठ हजार ब्राह्मण इकट्ठे हो गए / उसने उन्हें पूछा- 'तुम क्या करोगे ?' 'और आचार्य तुम ?' 'मैं तो पुत्र के पास प्रव्रजित होऊंगा।' उससे अस्सी-करोड़ धन ब्राह्मणों को सौंपा, योजन-भर ब्राह्मण-जनता को साथ ले, निकलकर पुत्र के ही पास पहुँचा। हस्तिपाल ने उस जन-समूह को भी आकाश में खड़े होकर धर्मोपदेश दिया। ___ फिर अगले दिन ब्राह्मणी सोचने लगी-मेरे चारों पुत्र श्वेत-छत्र छोड़कर प्रबजित होने के लिए चले गए। ब्राह्मण भी पुरोहित-पद और अस्सी करोड़ धन छोड़कर पुत्रों के पास ही गया। मैं यहाँ क्या करूंगी। मैं भी पुत्रों का ही अनुगमन करूंगी। उसने पूर्वकालीन उदाहरण को लाते हुए उल्लास गाथा कही