________________ 328 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन अघस्मि कोञ्चा व यथा हिमच्चये तन्तानि जालानि पदालिय हंसा, गछन्ति पुत्ता च पती च मय्हं साह कथं नानुवजे पजानं // 16 // "जिस प्रकार आकाश में क्रोंच (पक्षी) जाते हैं अथवा जिस प्रकार हिमपात के समय हंस जाल को काटकर चले गए, उसी प्रकार मेरे पुत्र और पति मुझे छोड़ कर चले गए। अब मैं अपने पुत्रों का अनुकरण कैसे न करूँ ?' इस प्रकार उसने 'मैं ऐसी सोचती हुई भी, क्यों न प्रबजित होऊँ ?' सोच, निश्चय करके, ब्राह्मणियों को बुलवाया और पूछा-'तुम क्या करोगी?' 'और आर्ये ! तुम ?' 'में प्रबजित होऊंगी।' 'हम भी प्रबजित होंगी।' उसने वह वैभव छोड़ दिया और योजन-भर अनुयाइयों को साथ ले, पुत्रों के पास ही गई। हस्तिपाल ने उस परिषद् को भी, आकाश में बैठे धर्मोपदेश दिया। फिर अगले दिन राजा ने पूछा-'पुरोहित कहाँ है ?' 'देव ! पुरोहित और उसकी ब्राह्मणी, सारा धन छोड़, दो-तीन योजन अनुयाइयों को साथ ले, पुत्रों के पास ही चले गए।' 'जिसका स्वामी नहीं, ऐसा धन राजा का होता है।' ऐसा सोच राजा ने उसके घर से धन मंगवा लिया। तब राजा की पटरानी ने पूछा-'राजा क्या करता है ?' उत्तर मिला-'पुरोहित के घर से धन मँगवा रहा है।' तब प्रश्न किया--'पुरोहित कहाँ है?' उत्तर मिल'सपत्नीक प्रबज्या के लिए निकल पड़ा है।' यह बात सुनी, तो पटरानी ने सोचा- 'यह राजा ब्राह्मण, ब्राह्मणी तथा चार पुत्रों द्वारा परित्यक्त मल और थूक को, मोह से मूढ़ होने के कारण, अपने घर उठवा कर मंगवा रहा है। इसे उपमा द्वारा समझाऊँगी।' उसने कसाई-घर से मांस मंगवाया, राजांगन में ढेर लगवा दिया, और सीधा-रास्ता छोड़ जाल तनवा दिया। गीध दूर से ही देखकर मांस के लिए उतरे। उनमें जो बुद्धिमान थे, उन्होंने जाल फैला देख सोचा कि भारी हो जाने पर हम सीधे न उड़ सकेंगे। वे खाया हुआ मांस भी छोड़, जाल में न फंस, सीधे उड़कर ही चले गए। किन्तु जो अन्धे-मूर्ख थे, उन्होंने उनका परित्यक्त, वमित मांस खाया और भारी हो जाने के कारण सीधे न उठ सके / वे जाकर जाल में फंस गए। तब एक गीध लाकर रानी को दिखाया गया। उसने उसे लिया और राजा के समीप जाकर बोली, 'महाराज आयें, राजागंन में एक तमाशा देखें।' उसने झरोखा खोला और 'महाराज, इन गोधों को देखें, कह दो गाथाएँ कही- .