________________ 326 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . देता, वह जंगल में अपने बैल को खोजता है, उसी प्रकार हे एसुकारी ! मेरा जो प्रव्रज्या रूपी अर्थ नष्ट हो गया, उसे मैं आज कैसे न खोज।' ___वे बोले-'तात गोपाल, एक दो दिन प्रतीक्षा कर / हमारे आश्वस्त होने पर पीछे प्रवजित होना।' उसने, 'महाराज, यह नहीं कहना चाहिए कि आज करने योग्य कार्य कल करूंगा। शुभ-कर्म आज और आज ही करना चाहिए'-कह, शेष गाथाएं कहीं हिय्यो ति हिय्यो ति पोसो परेति (परिहायति ) अनागतं नेतं अस्थीति जत्वा उपन्नछन्दं को पनुदेय्य धीरो // 12 // जो पुरुष कल और परसों करता रहता है, उसका पतन होता है। यह जान कर कि भविष्य-काल है ही नहीं, कौन धीर-पुरुष किसी (कुशल) संकल्प को टालेगा। ___ इस प्रकार गोपाल-कुमार ने दो गाथाओं से धर्मोपदेश दिया। फिर 'आप रहें, आपके साथ बातचीत करते ही करते व्याधि, जरा, मरण आदि आ पहुचते हैं' कह, योजन-भर जनता को साथ ले, निकल कर, दोनों भाइयों के पास ही चला गया। हस्तिपाल ने उसे भी आकाश में बैठकर धर्मोपदेश दिया। __फिर अगले दिन राजा और पुरोहित उसी प्रकार अजपाल कुमार के घर पहुंचे। उसके भी उसी प्रकार आनन्द प्रकट करने पर उन्होंने अपने आने का कारण कह, छत्र धारण करने की बात कही। कुमार ने पूछा-'मेरे भाई कहाँ हैं ?' 'वे हमें राज्य की अपेक्षा नहीं है' कह, श्वेत-छत्र छोड़, तीन योजन अनुयाइयों को साथ ले, निकल, जाकर गङ्गा-तट पर बैठे हैं / ' 'मैं अपने भाइयों के थूक को, सिर पर लिए-लिए नहीं घूमंगा। मैं भी प्रवजित होऊँगा / 'तात ! तू अभी छोटा है।' हमारे हाय का सहारा है / आयु होने पर प्रवजित होना / ' कुमार ने उत्तर दिया-'आप क्या कहते हैं ? क्या ये प्राणी बचपन में भी और बूढ़े होने पर भी नहीं मरते हैं ? यह बचपन में मरेगा और यह बूढ़े होने पर मरेगा-इसका किसी के भी हाथ अथवा पाँव में कोई प्रमाण नहीं। मैं अपना मृत्यकाल नहीं जानता / इसलिए अभी प्रव्रजित होऊँगा।' इतना कह दो गाथायें कहीं' पस्सामि वोह दहरि कुमारिं मतूपमं केतकपुफ्फनेत्तं अभुत्व भोगे पठमे वयस्मिं आदाय मच्चु वजते कुमारिं // 13 // युवा सुजातो सुमुखो सुदस्सनो सामो कुसुम्भपदिकिण्णमस्त्र - हित्वान कामे पटिगच्छ गेहं अनुजान में, पब्वजिस्सामि देव // 14 // .