________________ खण्ड 2, प्रकरण :1 कथानक संक्रमणे 325 मैं प्रवजित होऊँगा' कह चला गया।' पूछा-'वह इस समय कहाँ है ?' 'गंगा-तट पर !' 'तात ! मेरे भाई ने जिसे थूक दिया, उसकी मुझे जरूरत नहीं है।' 'मूर्ख, तुच्छ-प्रज्ञ प्राणी ही इस क्लेश का त्याग नहीं कर सकते, किन्तु मैं त्याग करूँगा।' इतना कह, राजा तथा पुरोहित को उपदेश देते हुए उसने दो गाथाएँ कहीं पंको च कामा पलिपी च कामा मनोहरा दुत्तरा, मच्चुधेय्या, एतस्मिं पंके पलिपे व्यसज्जा हीनत्तरूपा न तरन्ति पारं // 9 // अयं पुरे लुइं अकासि कम्म स्वायं गहीतो, न हि मोक्ख इतो मे ओलंधिया नं परिरक्खिस्सा मि * मायं पुन लुई अकासि कम्मं // 10 // 'काम-भोग कीचड़ हैं, काम-भोग दलदल हैं, मनोहर हैं, दुस्तर हैं, मरण-मुख हैं / इस कीचड़ में, इस दलदल में फंसे हुए होनात्म लोग तैर कर पार नहीं हो सकते।' _ 'मैंने पूर्व जन्म में रौद्र-कर्म किया। उसका फल अब भोग रहा हूँ। उससे मोक्ष नहीं है। अब मैं वाणी और कर्मेन्द्रियों की रक्षा करूँगा, ताकि फिर मुझसे रौद्र-कर्म न हो।' ____ 'आप रहें, आपके साथ बात करते ही करते व्याधि, जरा, मरण आदि आ पहुंचते हैं' कह, उपदेश दे, योजन-भर जनता को साथ ले, निकल कर हस्तिपाल कुमार के पास पहुँचा। उसने आकाश में बैठ, उसे धर्मोपदेश देते हुए कहा-'भाई ! यहाँ बड़ा जनसमूह एकत्र होगा। अभी हम यहीं रहें।' दूसरे ने भी 'अच्छा' कह स्वीकार किया। ___फिर एक दिन राजा और पुरोहित उसी प्रकार गोपाल-कुमार के घर पहुंचे। उसके द्वारा भी उसी प्रकार स्वागत किए जाने पर उन्होंने अपने आने का कारण कहा। उसने भी अश्वपाल-कुमार की ही तरह अस्वीकार किया। बोला-'मैं चिरकाल से खोए बैल को ढूँढ़ने वाले की तरह प्रव्रज्या को ढूँढता फिर रहा हूँ। बैल के पद-चिह्नों की तरह मुझे वह मार्ग दिखाई दे गया है, जिस पर भाई चला है। अब मैं उसी मार्ग से चलँगा।' - इतना कह, यह गथा कही. गवं न नटुं पुरिसो यथा वने परियेसति राज अपस्समानो, एवं नट्ठो एसुकारी में अत्थो सो हं कथं न गवेसेय्य राज // 21 // 'हे राजन् ! जिस प्रकार वह आदमी जिसका बैल खो गया है और दिखाई नहीं