________________ खण्ड : 2, प्रकरण : 1. कथानक संक्रमण '313 अहं पि जाणामि जहेह साह! अद्धा हि सच्चं वचनं तव एतं जं मे तुमं साहसि वक्कमेयं / यथा इसी भाससि एव एतं भोगा इमे संगकरा हवन्ति कामा च मे सन्ति अनप्परूपा जे वुज्जया अज्जो अम्हारिसेहिं // 27 // ते दुच्चजा मा दिसकेन मिक्खु // 21 // मागो जहा पंकजलावसन्नो नागो यथा पङ्कमज्झे व्यसन्नो बटुं थलं नामिसमेइ तीरं। पस्सं थलं नामिसम्मोति गन्तं एवं वयं कामगुणेसु गिद्धा एवं पहं कामपङ्के व्यसन्नों म 'भिक्खुणो मग्गमणुष्वयामो // 30 // न भिक्खुनो मगं अनुब्बजामि // 22 // जइ ता सि भोगे चइउं असत्तो न चे तुवं उस्सहसे जनिन्द अज्जाई कम्माई करेहि रायं ! / कामे इमे मानुसके पहात, धम्मे ठिओ सम्वपयाणुकम्पी धम्मं बलिं पहपयस्सु राज तो होहिसि देवो इओ विउव्वी // 32 // अधम्मकारो च ते माहु रट्टे // 24 // एक विश्लेषण - इन दोनों के निरीक्षण से पता चलता है कि उत्तराध्ययन की कथावस्तु विस्तृत है। परन्तु आगे चल कर ज़ब कुमार ब्रह्मदत्त अपने मंत्री-पुत्र वरधनु के साथ घर से निकल कर दूर चला जाता है और जब तक वे दोनों पुन: अपने नगर में नहीं लौट आते तब तक का कथानक बहुत जटिल हो गया है। अवान्तर छोटी-मोटी घटनाओं के कारण कथावस्तु की शृङ्खला को याद रखना अत्यन्त दुष्कर हो जाता है। किन्तु ये सारी अवान्तर घटनाएं कुमार ब्रह्मदत्त से सम्बन्धित रहती हैं और उन सबका अन्त किसी कन्या के साथ पाणिग्रहण से होता है। ___ कुमार ब्रह्मदत्त वरधनु के साथ अपनी नगरी में आता है। राज्याभिषेक होने के पश्चात् भाई की स्मृति हो आती है। दोनों मिलते हैं / मुनि चित्र का जीव धर्माराधना कर मुक्त हो जाता है / कुमार ब्रह्मदत्त (सम्भूत का जीव) भोगों में आसक्त हो नरक में जाता है। - जैन-कथानक में सम्भूत के जीव कुमार ब्रह्मदत्त को नरकगामी बताया है और बौद्ध-परम्परा के सम्भूत को ब्रह्मलोक गामी / यह अन्तर है। . सरपेन्टियर ने माना है कि इन दोनों कथानकों में केवल कथावस्तु का ही साम्य नहीं है, किन्तु उनके पद्यों में भी असाधारण साम्य है।' . 1. The Uttaradhyayana Sutra, p. 45........ .............