________________ आसी 312 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ... समान गाथाएँ उत्तराध्ययन, अध्ययन 13 चित्त सम्भूत जातक (संख्या 468) श्लोक गाथा दासा दसणे चण्डालाहुम्ह अवन्तीसु मिया कालिंजरे नगे। मिगा ने रजरं पति, हंसा मयंगतीरे उवकुसा नम्मदा तीरे सोवागा कासिभूमिए // 6 // त्यज्ज ब्राह्मण - खत्तिया // 16 // सव्वं सुचिण्णं सफलं नराणं सब्बं नरानं सफलं सुचिणं कडाण कम्माण न मोक्ख अस्थि / न कम्मना किञ्चन मोघमस्थि, अत्थेहि कामेहि य उत्तमे हिं पस्सामि सम्भूतं महानुभावं आया ममं पुण्णफलोववेए // 10 // जाणासि संभूय ! महागुभाग सब्बं नरानं सफलं सुचिण्णं महिड्ढियं पुण्णफलोववेयं / न कम्मना किञ्चन मोघमस्थि, चित्तं पि जाणाहि तहेव रायं! चित्तं विजानाहि तत्थ एव देव इड्ढी जुई तस्स वि य प्पभूया // 11 // इद्धो मन तस्स यथापि तुम्हं // 3 // महत्थरूवा वयणप्पभूया सुलद्ध लामा बत मे अहोसि गाहागुगीया नरसंघमझे। गाथा सुगीता परिसाय मज्झे, जं भिक्खुणो सीलगुणोववेया सो हं इसिं सील वतूपपन्न इहज्जयन्ते समणो म्हि जाओ // 12 // दिस्वा पतीतो सुमनो हमस्मि // 8 // उच्चोयए महु कक्के य बम्भे पवेइया आवसहा य रम्मा / इम गिहं चित्तधणप्पभूयं पसाहि पंचालगुणोववेयं // 13 // नट्टेहि गीएहि य वाइएहिं रम्मं च ते आवसथं करोन्तु नारीजणाई परिवारयन्तो नारीगणेहि परिचारयस्सु, भुंजाहि भोगाइ इमाइ भिक्खू ! करोहि ओकासं . अनुग्गहाय मम रोयई पव्वज्जा हु दुक्खं // 14 // उभो पि इमं इस्सरियं करोम // 10 // उवणिजई जीवियमप्पमायं उपनीयती जीवितं अपमायु वणं जरा हरइ नरस्स रायं। वणं जरा हन्ति नरस्स जीवितो पंचालराया ! वयणं सुणाहि करोहि पञ्चाल मम एत वाक्यं मा कासि कम्माइं महालयाई॥२६॥ मा कासि कम्मं निरयूप पत्तिया // 20 //