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________________ 308 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . मुझे इसमें सन्देह नहीं है कि गाथा अच्छी प्रकार कही गई है। मैं तुझे सौ गाँव देता हूँ // 4 // ] तब लड़के ने पाँचवीं गाथा कही-- - [ मैं चित्त नहीं हूँ। मैंने अन्यत्र से ही सुनी है। (तुम्हारे उद्यान में बैठे हुए एक) ऋषि ने ही मुझे यह सिखाया है कि जाकर राजा के सामने यह गाथा कहो। वह सन्तुष्ट होकर वर दे सकता है // 5 // ] यह सुन राजा ने सोचा वह मेरा भाई चित्त होगा। अभी जाकर उसे देलूँगा। उसने आदमियों को आज्ञा देते हुए दो गाथायें कहीं--- [सुन्दर सिलाई वाले, अच्छे बने हुए रथ जोते जायें। हाथियों को कसो और उनके गले में मालायें (आदि) डालो // 6 // भेरी, मृदङ्ग तथा शङ्ख बजे / शीघ्र यान जोते जायें। आज ही मैं उस आश्रम में जाऊंगा जहाँ जाकर बैठे हुए ऋषि को देखूगा // 7 // ] उसने यह कहा और श्रेष्ठ रथ पर चढ़ शीव्र जाकर उद्यान के द्वार पर रथ छोड़ चित्त-पण्डित के पास पहुंचा। वहाँ प्रणाम कर एक ओर खड़े हो प्रसन्न मन से आठवीं गाथा कही- [परिषद् के बीच में कही हुई गाथा के कारण आज मुझे बड़ा लाभ हुआ। आज मैं शील-व्रत से युक्त ऋषि को देख कर प्रीति-युक्त तथा प्रसन्न हूँ // 8 // ] चित्त-पण्डित को देखने के समय से ही उसने प्रसन्न हो "मेरे भाई के लिए पलंग बिछाओ" आदि आज्ञा देते हुए नौवीं गाथा कही [ आप आसन तथा पादोदक ग्रहण करें। हम आप से अर्घ्य के बारे में पूछ रहे हैं / आप हमारा अर्घ्य ग्रहण करें // 6 // ] ____ इस प्रकार मधुर-स्वागत कर राज्य के बीच में से दो टुकड़े करके देते हुए यह गाथा कही [ तुम्हारे लिए सुन्दर भवन बनायें और नारीगण तुम्हारी सेवा में रहें। मुझ पर कृपा करके मुझे आज्ञा दें। हम दोनों मिलकर यहाँ राज्य करें // 10 // ] उसकी यह बात सुन चित-पण्डित ने धर्मोपदेश देते हुए छः गाथायें कहीं [हे राजन् ! दुष्कर्मों का बुरा फल देखकर और शुभ-कर्मों का महान् विपाक देखकर मैं अपने आपको ही संयत रखूगा-मुझे पुत्र, पशु तथा धन नहीं चाहिए // 11 // ____ प्राणियों का जीवन यहाँ दस दशान्डों का ही है। बिना उस अवधि को पहुँचे हो प्राणी टूटे बाँस के समान सूख जाता है // 12 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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