________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण उस समय एक लड़का उस गीत को गाता हुआ लकड़ियाँ बटोर रहा था। चित्तपण्डित ने उसे बुलाया / वह आकर प्रणाम करके खड़ा हुआ। उससे पूछा-"तू प्रात:काल से यही एक गीत गाता है / क्या और नहीं जानता ?" "भन्ते ! और भी अनेक गीत जानता हूँ। किन्तु ये हमारे राजा के प्रिय गीत हैं, इसलिए इन्हें ही गा रहा हूँ।" "क्या राजा के विरुद्ध गीत गाने वाला भी कोई है ?" "भन्ते ! कोई नहीं।" "तू राजा के गीत के विरुद्ध गीत गा सकेगा ?" "जानगा तो गा सकूँगा।" "तो तू राजा के दो गीत गाने पर इसे तीन गीत करके गाना। राजा के पास जाकर गाना / राजा प्रसन्न होकर तुझे बहुत ऐश्वर्य देगा।" उन्होंने उसे गीत दे विदा किया / वह शीघ्र माँ के पास गया और सज-सजा कर राजद्वार पर पहुंचा। वहाँ उसने कहलवाया-एक लड़का आपके साथ प्रति-गीत गायेगा। राजा ने कहलवाया-आ जाय / उसने जाकर प्रणाम किया / राजा ने पूछा-'तात ! तू प्रति-गीत गायेगा ?" "हाँ देव ! सारी राज्य-परिषद् इकट्ठी करायें।" जब सारी राज्य-परिषद् इकट्ठी हो गई तब उसने राजासे कहा- "देव ! आप अपना गीत गायें, मैं प्रति-गीत गाऊँगा।" राजा ने दो गाथायें कहीं [ आदमियों के किए हुए सभी कर्म फल देते हैं, किया गया कोई कर्म व्यर्थ नहीं जाता। मैं देखता हूँ कि महानुभाव सम्भूत अपने कर्म से पुण्य-फल को प्राप्त हुआ है // 1 // ] [आदमियों के किये सभी कर्म फल देते हैं। किया गया कोई कर्म व्यर्थ नहीं जाता। कदाचित् चित्त का भी मन मेरे ही मन की तरह समृद्ध होगा // 2 // ] उसके गीत के बाद लड़के ने गाते हुए तीसरी गाथा कही [आदमियों के किए हुए सभी कर्म फल देते हैं, किया गया कोई कर्म व्यर्थ नहीं जाता। हे देव ! यह जानें कि चित्त का मन भी तुम्हारे मन ही की तरह समृद्ध है // 3 // ] यह सुन राजा ने चौथी गाथा कही [ क्या तू चित्त है, अथवा तू ने अपने को चित्त कहने वाले किसी से यह गाथा सुनी है, अथवा तुझे किसी ऐसे आदमी ने जिसने चित्त को देखा कहीं हो यह गाथा कही है ?