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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन .. .. चाण्डाल-भाषा में ही कहा-"निगल, निगल।" ब्रह्मचारियों ने परस्पर एक दूसरे की . ओर देखा-यह क्या भाषा है ? चित्त पण्डित ने मङ्गल-पाठ किया। ब्रह्मचारियों ने (वहाँ से) निकल पृथक्-पृथक् हो जहाँ-तहाँ बैठ भाषा की परीक्षा की और पता लगा लिया कि यह चाण्डाल-भाषा है। तब उन्होंने उन दोनों को पीटा-रे दुष्ट चाण्डालो ! इतने दिन तक 'हम ब्राह्मण हैं' कह कर हमें धोखा दिया। तब एक सत्पुरुष ने "हटो" कह कर उन्हें बचाया और उपदेश दिया-यह तुम्हारी 'जाति' का दोष है, जाओ कहीं प्रव्रजित होकर जीवो। ब्रह्मचारियों ने जाकर आचार्य को कह दिया कि ये चाण्डाल हैं / वे भी जंगल में जा ऋषियों की प्रव्रज्या के ढंग पर प्रवजित हुए। फिर थोड़े ही समय बाद वहाँ से च्युत होकर नेरञ्जरा नदी के किनारे मृगी की कोख में जन्म ग्रहण किया। वे माता की कोख से निकलने के समय से ही इकटे चरते, पृथक्-पृथक् न रह सकते / / एक दिन चर चुकने के बाद सिर से सिर, सींगों से सींग, थोथनी से थोथनी मिलाये खड़े जुगाली कर रहे थे। एक शिकारी ने शक्ति चला एक ही चोट में दोनों की जान ले ली। वहाँ से च्युत होकर नर्मदा के किनारे वह (बाज ?) होकर पैदा हुए। वहाँ भी बड़े होने पर चोंगा चुकने के बाद सिर से सिर, चोंच से चोंच मिलाकर खड़े थे। एक चिड़ीमार ने उन्हें देखा और एक ही झटके में पकड़ कर मार डाला / किन्तु, वहाँ से च्युत होकर चित पण्डित तो कोसम्बी में पुरोहित का पुत्र होकर पैदा हुआ, सम्भूत पण्डित उत्तर पाञ्चाल राजा का पुत्र होकर / नामकरण के दिन से उन्हें अपने पूर्व-जन्म याद आ गये। उनमें से सम्भूत पण्डित को क्रमशः याद न रह सकने के कारण केवल चाण्डाल का जन्म ही याद था, किन्तु चित्त-पण्डित को क्रमशः चारों जन्म याद थे। वह सोलह वर्ष का होने पर (घर से) निकला और ऋषि-प्रवज्या ग्रहण कर ध्यान-अभिज्ञा-लाभी हो ध्यान-सुख का आनन्द लेता हुआ समय बिताने लगा। ___ सम्भूत पण्डित ने पिता के मरने पर छत्र धारण किया। उसने छत्र-धारण के दिन ही मंगल-गीत के रूप में उल्लास-वाक्य के तौर पर दो गाथायें कहीं। उन्हें सुन 'यह हमारे राजा का मङ्गल-गीत है' करके रनिवास की स्त्रियाँ तथा गन्धर्व उसी गीत को गाते थे। क्रमशः सभी नगर-निवासी भी 'यह हमारे राजा का प्रिय गीत है' समझ उसे ही गाने लगे। चित्त पण्डित ने हिमालय में रहते ही रहते सोचा-"क्या मेरे भाई सम्भूत ने अभी छत्र-धारण किया है, अथवा नहीं किया है ?' उसे पता लगा कि धारण कर लिया है। तब उसने सोचा-"अभी नया राज्य है। अभी समझा न सकूँगा। बूढ़े होने पर उसके पास जा, धर्मोपदेश दे उसे प्रवजित करूंगा।" वह पचास वर्ष के बाद जब राजा के लड़के-लड़की बड़े हो गये, ऋद्धि से वहाँ पहुंचे और जा कर उद्यान में उतर, मङ्गल-शिला पर स्वर्ण-प्रतिमा की तरह बैठे।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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