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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन चाहती हूँ।” कुमार ने कहा- "बोलो।" उस स्त्री ने कहा- "इसी नगरी में वैश्रमण नाम का सार्थवाह रहता है / उसकी पुत्री का नाम श्रमती हैं / मैंने उसको पाला-पोषा है / वह वही बालिका है, जिसकी तुमने हाथी से रक्षा की है। हाथी के संभ्रम से बच जाने पर उसने तुम्हें जीवनदाता मान कर तुम्हारे प्रति अनुरक्ति दिखाई है। तुम्हारे रूप, लावण्य और कला-कौशल को देख कर वह तुम्हारे में अत्यन्त अनुरक्त है / तभी से वह तुम्हें देखती हुई स्तम्भित की तरह, लिखित मूर्ति की तरह, भूमि में गढ़ी कील की तरह, निश्चल और भरी आँखों से क्षण भर वहाँ ठहरी। हाथी का संभ्रम दूर होने पर ज्यों-त्यों उसे घर ले जाया गया। वहाँ भी वह न स्नान करती है, न भोजन ही करती है / वह तब से मौन है। मैं उसके पास गई। उससे कहा-'पुत्री ! तुम बिना कारण ही क्यों अनमनी हो रही हो ? मेरे वचनों की क्यों अवहेलना कर रही हो ?' उसने मुस्कुराते हुए कहा---'माँ ! तुमसे मैं क्या छपाऊँ ? किन्तु लज्जावश मैं चुप हूँ। माँ ! यदि उस कुमार के साथ, जिसने मुझे हाथी से बचाया है, मेरा विवाह नहीं हो जाता, तो मेरा मरना निश्चित है। यह बात सुन मैंने उसके पिता से सारी बात कही। उसने मुझे तुम्हारे पास भेजा है / आप कृपा कर इस बालिका को स्वीकार करें।' कुमार ने स्वीकार कर लिया। शुभ दिन में उसका विवाह सम्पन्न हुआ। वरधनु का विवाह अमात्य सुबुद्धि की पुत्री नन्दा के साथ हुआ। दोनों सुख भोगते हुए वहीं रहने लगे। कई दिन बीते / चारों ओर उनकी बातें फैल गई। वे चलते-चलते वाराणसी पहुंचे। राजा कटक ने जब यह संवाद सुना तव वह बहुत ही प्रसन्न हुआ और पूर्ण सम्मान से कुमार ब्रह्मदत्त का नगर में प्रवेश करवाया। अपनी पुत्री कटकावती से उसका विवाह किया। राजा कटक ने दूत भेज कर सेना-सहित पुष्पचूल को बुला लिया। मंत्री धनु और राजा कणेरुदत्त भी वहाँ आ पहुँचे और भी अनेक राजा मिल गए / उन सबने वरधनु को सेनापति के पद पर नियुक्त कर काम्पिल्यपुर पर चढ़ाई कर दी। घमासान युद्ध हुआ। राजा दीर्घ मारा गया। 'चक्रवर्ती की विजय हुई'—यह घोष चारों ओर फैल गया। देवों ने आकाश से फूल बरसाए / बारहवाँ चक्रवर्ती उत्पन्न हुआ है, यह नाद हुआ। सामन्तों ने कुमार ब्रह्मदत्त का चक्रवर्ती के रूप में अभिषेक किया। - राज्य का परिपालन करता हुआ ब्रह्मदत्त सुखपूर्वक रहने लगा। एक बार एक नट आया। उसने राजा से प्रार्थना की--"मैं आज मधुकरी गीत नामक नाट्य-विधि का प्रर्दशन करना चाहता हूँ।" चक्रवर्ती ने स्वीकृति दे दी। अपराह्न में नाटक होने लगा। उस समय एक कर्मकरी ने फूल-मालाएं ला कर राजा के सामने रखीं। राजा ने उन्हें देखा और मधुकरी गीत सुना। तब चक्रवर्ती के मन में एक विकल्प उत्पन्न हुआ
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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