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________________ खण्ड : 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 269 "उस रात आप दोनों रथ पर सो गए थे / मैं आगे बैठा था। एक चोर घनी झाड़ी में छपा बैठा था। उसने पीछे से बाण मारा। मैं वेदना से पराभूत हो धरती पर गिर पड़ा / आप पर भी कोई आपत्ति न आ जाए, इस लिए मैंने आवाज नहीं की। रथ विलीन हो गया / मैं भी सघन वृक्षों को चीरता हुआ उसी गाँव में पहुंचा, जहाँ आप थे / वहाँ के प्रधान से मैंने आपके विषय की सारी बात जान ली। मुझे अत्यन्त हर्ष हुआ। ज्योंत्यों मैं यहाँ आया / आपसे मिलना हुआ।" दोनों अत्यन्त आनन्द से दिन बिता रहे थे। एक बार दोनों ने विचार कियाकितने दिन तक हम निठल्लेपन-से बैठे रहेंगे। हमें कोई उपाय ढूँढ़ना चाहिए। मधुमास आया। मदनमहोत्सव की वेला में नगर के सारे लोग क्रीड़ा करने उद्यान में गए / कुतूहलवश कुमार और वरधनु-दोनों भी वहीं गए। सभी नर-नारी विविध क्रीड़ाओं में मग्न थे। इतने में ही मदोन्मत्त राज-हस्ती आलान से छूट गया। वह निरंकुश हो दौड़ पड़ा। सभी लोग भयभीत हो गए। भयंकर कोलाहल होने लगा। सभी क्रीड़ागोष्ठियाँ भंग हो गई। इस प्रवृत कोलाहल में एक तरुण स्त्री मतहाथी के भय से. पागल की तरह दौड़ती हुई त्राण के लिए इधर-उधर देख रही थी। हाथी की दृष्टि उस पर पड़ी। चारों ओर हाहाकार होने लगा। स्त्री के परिवार वाले चिल्लाने लगे। कुमार ने यह देखा / वह भयभीत तरुणी के आगे हो, हाथी को हाँका। कुमारी बच गई। हाथी कुमारी को छोड़ कर अत्यन्त कुपित हो, सूड को घुमाता हुआ, कानों को फड़फड़ाता हुआ कुमार की ओर दौड़ा। कुमार ने अपनी चादर को गेंद बना हाथी की ओर फेंका। हाथी ने उसे रोष से अपनी सूड में पकड़ आकाश में उछाल दिया। वह धरती पर जा गिरा। हाथी उसे पुनः उठाने में प्रयत्नशील था कि कुमार शीघ्र ही उसकी पीठ पर जा बैठा और तीखे अंकुश से उस पर प्रहार किया। हाथी उछला। तत्क्षण ही कुमार ने मीठे वचनों से उसे सम्बोधित किया। हाथी शान्त हो गया / लोगों ने यह देखा। चारों ओर से साधुवाद की ध्वनि आने लगी। मंगलपाठकों ने कुंमार का जयघोष किया। हाथी को आलान पर ले जाया गया। कुमार पास ही खड़ा रहा। राजा आया / कुमार को देख वह विस्मित हुआ। उसने पूछा-"यह कौन है ?" मंत्री ने सारी बात बताई / राजा प्रसन्न हुआ। कुमार को साथ ले वह अपने राजमहल में आया। स्नान-भोजन-पान आदि से उसका सत्कार किया। भोजन के पश्चात् राजा ने ' अपनी आठ पुत्रियाँ कुमार को समर्पित की। शुभ मुहूर्त में विवाह-संस्कार सम्पन्न हुआ। कुमार कई दिन वहाँ रहा। एक दिन एक स्त्री कुमार के पास आ कर बोली- "कुमार ! मैं आप से कुछ कहना
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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