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________________ 268 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन धर्मदेशना दे हमें शान्त किया और संकरी-विद्या से हमारे वृत्तान्त को जान कर उसने कहा---'मुनि के वचन को याद करो। ब्रह्मदत्त को अपना पति मानो। हमने अनुराग पूर्वक मान लिया। पुष्पवती के सफेद संकेत से आप कहीं चले गए। हमने आप को अनेक नगरों व ग्रामों में ढूँढ़ा, पर आप कहीं नहीं मिले। अन्त में हम खिन्न हो यहाँ आई। आज हमारा भाग्य जागा। अतर्कित हिरण्य की वृष्टि के समान आपके दर्शन हुए। हे महाभाग ! पुष्पवती की बात को याद कर आप हमारी आशा पूरी करें।" यह सुन कुमार प्रसन्न हुआ। सारी बात स्वीकार कर ली। उनके साथ गन्धर्व विवाह किया। रात वहीं बिताई / प्रातःकाल हुआ। कुमार ने कहा- "तुम दोनों पुष्पवती के पास चली जाओ। उसके साथ तब तक रहना, जब तक मैं राजा न बन जाऊँ / " दोनों ने बात मान ली। उनके जाने पर कुमार ने देखा कि न वहाँ प्रासाद है और न परिजन / उसने सोचा-यह विद्याधारियों की माया है अन्यथा ऐसा इन्द्रजाल-सा कैसे होता ? कुमार को रत्नवती का स्मरण हो आया और वह उसको ढूँढने आश्रम की ओर चला। वहाँ न तो रत्नवती ही थी और न कोई दूसरा। किसे पूछू, यह सोच उसने इधर-उधर देखा। कोई नहीं मिला / वह उसी की चिन्ता में व्यग्र था कि वहाँ एक पुरुष दीखा / कुमार ने पूछा-"महाभाग ! क्या तुमने अमुक-अमुक आकृति तथा वेष-धारण करने वाली स्त्री को आज या कल कहीं देखा है ?" उसने कहा- "कुमार ! क्या तुम रत्नवती के पति हो ?" कुमार ने कहा-"हाँ!" - उसने कहा-"कल अपराह्न वेला में मैंने उसको रोते देखा था। मैं उसके पास गया और पूछा-'पुत्री ! तुम कौन हो ? कहाँ से आई हो ? दुःख का कारण क्या है ? कहाँ जाना है ?' उसने कुछ कहा। मैंने उसे पहिचान लिया। मैंने कहा-'तुम मेरी धेवती हो। मैंने उसका वृत्तान्त जाना और उसे उसके चाचा के पास ले गया। उसने उसे आदरपूर्वक अपने घर में प्रवेश कराया। इसीलिए अन्वेषण करने पर भी वह तुम्हें नहीं मिली। तुमने अच्छा किया कि यहाँ आ गए।" इतना कह कर उसने कुमार को सार्थवाह के घर ले गया। रत्नवती के साथ उसका पाणिग्रहण सम्पन्न हुआ। वह विषयसुख का भोग करता हुआ वहीं रहने लगा। एक दिन उसे याद हो आया कि आज 'वरधनु का दिन है' यह सोच उसने ब्राह्मणों को भोजन के लिए निमंत्रित किया। संयोगवश वरवनु ब्राह्मण के वेश में भोजन लेने वही आ गया। उसने एक नौकर से कहा-"जाओ! अपने स्वामी से कहो कि यदि तुम मुझे भोजन दोगे तो वह उस परलोकवर्ती के मुँह और पेट में चला जाएगा, जिसके लिए तुमने भोज किया है।" नौकर ने जा कुमार से सारी बात कही। कुमार बाहर आया। उसने ब्राह्मण को पहचान लिया। दोनों ने परस्पर आलिंगन किया। दोनों अन्दर गए। स्नान, भोजन आदि से निवृत्त हो कुमार ने वरधनु से अपना वृत्तान्त पूछा / वरधनु ने कहा
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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