________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 297 दिखाती हुई दोनों ने कहा-"क्या आप जैसे महापुरुषों के लिए यह उचित है कि भक्ति से अनुरक्त व्यक्ति को भुला कर परिभ्रमण करते रहें ?" कुमार ने कहा-"वह कौन है, जिसके लिए तुम कह रही हो ?" उन्होंने कहा- "कृपा कर आप आसन ग्रहण करें।" कुमार बैठ गया। स्नान किया। भोजन से निवृत्त हुआ। दोनों स्त्रियों ने कहा-"महासत्व ! इसी भरत के वैताढ्य पर्वत की दक्षिण श्रेणी में शिवमन्दिर नाम का नगर है / वहाँ ज्वलनसिंह नाम का राजा राज्य करता है। उसकी महारानी का नाम विद्युतशिखा है। हम दोनों उनकी पुत्रियाँ हैं / हमारे बड़े भाई का नाम नाट्योन्मत्त है / एक बार हमारे पिता अग्निशिख मित्र के साथ गोष्ठी में बैठे थे। उन्होंने आकाश की ओर देखा। अनेक देव तथा असुर अष्टापद पर्वत के अभिमुख जिनेश्वर देव के वन्दनार्थ जा रहे थे। राजा भी अपने मित्र तथा बेटियों के साथ उसी ओर चल पड़ा / हम सब अष्टापद पर्वत पर पहुंचे। जिनदेव की प्रतिमाओं को वन्दना की। सुगन्धित द्रव्यों से अर्चा की। तीन प्रदक्षिणा कर लौट रहे थे। हमने देखा कि एक अशोक वृक्ष के नीचे दो मुनि खड़े हैं / वे चरणलब्धि सम्पन्न थे। हम उनके पास गए। वन्दना कर बैठ गए। उन्होंने धर्मकथा कही___ 'संसार असार है। शरीर विनाशशील है। जीवन शरद् ऋतु के बादलों की तरह है। यौवन विद्युत् के समान चञ्चल है। भोग किंपाल फल जैसे है। इन्द्रिय-जन्य सुख संध्या के राग की तरह है। लक्ष्मी कुशाग्न पर टिके हुए पानी की बूंद की तरह चञ्चल है। दुःख सुलभ है, सुख दुर्लभ है। मृत्यु सर्वत्रगामी है। ऐसी स्थिति में प्राणी को - मोह का बन्धन तोड़ना चाहिए। जिनेन्द्र प्रणीत धर्म में मन लगाना चाहिए।' परिषद् ने यह धर्मोपदेश सुना। लोग विसर्जित हुए। अवसर देख अग्निशिख ने पूछा-'भगवन् ! इन बालिकाओं का पति कौन होगा?' मुनि ने कहा-'इनका पति भातृ-वधक होगा।' ___ यह सुन राजा का चेहरा श्याम हो गया। हमने पिता से कहा-'तात ! मुनियों ने जो संसार का स्वरूप बताया है, वह यथार्थ है। हमें ऐसा विवाह नहीं चाहिए। हमें ऐसा विषय-सुख नहीं चाहिए।' पिता ने बात मान ली। तब से हम अपने प्रिय भाई की स्नान-भोजन आदि की व्यवस्था में ही चिन्तित रहती हैं। हम अपने शरीर-परिकर्म का कोई ध्यान नहीं रखतीं। - एक दिन हमारे भाई ने घूमते हुए तुम्हारे मामे की लड़की पुष्पवती को देखा। वह उसके रूप पर मुग्ध हो गया और उसे हरण कर यहाँ ले आया। परन्तु वह उसकी दृष्टि सहने में असमर्थ था। अत: विद्या को साधने के लिए गया। आगे का वृत्तान्त आप जानते हैं।' 'हे महाभाग ! उस समय तुम्हारे पास से आ कर पुष्पवती ने हमें भाई का सारा वृत्तान्त सुनाया। उसे सुन कर हमें अत्यन्त शोक हुआ। हम रोने लगीं। पुष्पवती ने 38 .