________________ 296 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन. कुमार ने भी अनेक प्रकार से प्रहार किए। चोर-सेनापति हार कर भाग गए। कुमार ने रथ आगे बढ़ाया। वरधनु ने कहा- "कुमार ! तुम बहुत परिश्रान्त हो गए हो / कुछ समय के लिए रथ में ही सो जाओ।" कुमार और रत्नवती दोनों सो गए / रथ आगे बढ़ रहा था। वे एक पहाड़ी प्रदेश में पहुंचे। घोड़े थक गए। एक नदी के पास जा, वे रुक गए। कुमार जागा, जंभाई लेकर उठा। आस-पास देखा। वरधनु नहीं दीखा / कुमार ने सोचा–संभव है पानी लाने गया हो। कुछ देर बाद उसने भयाक्रान्त हो वरधनु को पुकारा। कोई उत्तर नहीं मिला। रथ के अगले भाग को देखा। वह लोही से लिपा हुआ था। कुमार ने सोचा-वरधनु मारा गया है। हा! मैं मारा गया। अब मैं क्या करूं ? यह कहते हुए वह रथ में ही मूच्छित हो गिर गया। कुछ समय बीता। होश आया। 'हा, हा, भ्रात वरधनु !' यह कहता हुआ प्रलाप करने लगा। रत्नवती ने ज्योंत्यों उसे बिठाया। कुमार ने कहा-"सून्दरी! स्पष्ट नहीं जान पा रहा है कि क्या वरधन मर गया है या जीवित है ? मैं उसको ढूँढ़ने के लिए पीछे जाना चाहता हूँ।" रत्नवती ने कहा-"आर्यपुत्र ! यह पीछे चलने का अवसर नहीं है। मैं एकाकिनी हूँ। यह भयंकर जंगल है। इसमें अनेक चोर और श्वापद रहते हैं। यहां की सारी घास पैरों से रौंदी हुई है, इसलिए यहाँ पास में ही कोई वस्ती होनी चाहिए।" कुमार ने उसकी बात मान ली। वह मगध देश की ओर चल पडा। उस देश की संधि-संस्थित एक ग्राम में पहुंचा। ग्राम-सभा में बैठे हुए ठाकुर ने उसे प्रवेश करते हुए देखा। उसे विशेष व्यक्ति मान कर बह उठा। उसका सम्मान किया। अपने घर ले गया। रहने के लिए मकान दिया। जब सुखपूर्वक वह बैठ चुका था, तब ठाकुर ने कुमार से कहा-"महाभाग ! तुम बहत ही उद्विग्न दोख रहे हो।" कुमार ने कहा- "मेरा भाई चोरों के साथ लड़ता हुआ न जाने कहाँ चला गया? किस अवस्था को प्राप्त हो गया ? उसे ढूँढ़ने के लिए मुझे जाना चाहिए।" ठाकुर ने कहा-"आप खेद न करें। यदि वह इस अटवी में होगा तो अवश्य ही मिल जाएगा।" ठाकूर ने अपने आदमो भेजे। विश्वस्त आदमी चारों ओर अटवी में गए। वे आकर बोले- "स्वामिन् ! हमें अटवी में कोई खोज नहीं मिली। केवल एक बाण मिला है।" यह सुनते ही कुमार अत्यन्त उद्विग्न हो गया। उसने सोचा-निश्चय ही वरधन मारा गया है। रात आई। कुमार और रत्नवती सो गए। एक प्रहर रात बीती। गाँव में चोर घुसे / लूट-खसोट होने लगी। कुमार ने चोरों का सामना किया। सभी चोर भाग गए। गाँव के प्रमुख ने कुमार का अभिनन्दन किया। प्रात:काल हुआ। ठाकुर ने अपने पुत्र को उनके साथ भेजा / वे चलते-चलते राजगृह पहुंचे। नगर के बाहर एक परिव्राजक का आश्रम था। कुमार रत्नवती को आश्रम में बिठा -- गाँव के अन्दर गया। प्रवेश करते ही उसने अनेक खम्भों पर टिका हुआ, अनेक कलाओं से निर्मित एक धवल भवन देखा। वहां दो सुन्दर कन्याएं बैठी थीं। कुमार को देख कर अत्यन्त अनुराग