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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 265 ___ वरधनु द्वारा कही गई सारी बात सुन कर कुमार रत्नवती को बिना देखे ही उसमें तन्मय हो गया / उसको प्राप्त करने के उपाय सोचते-सोचते अनेक दिन बीत गए। ____ एक दिन वरधनु बाहर से आया और सम्भ्रान्त होता हुआ बोला- "कुमार ! इस नगर के स्वामी द्वारा कौशलाधिपति ने हमें ढूँढने के लिए विश्वस्त पुरुषों को भेजा है। इस नगर के स्वामी ने ढूँढना प्रारम्भ कर दिया-ऐसा मैंने लोगों से सुना है।" यह व्यतिकर जान कर सागरदत्त ने दोनों को भोहरे में छपा दिया। रात्रि आई / कुमार ने सागरदत्त से कहा- "ऐसा कोई उपाय करो, जिससे हम यहाँ से निकल जाएँ।" यह सुन कर सागरदत्त उन दोनों को साथ ले, नगरी के बाहर चला गया। कुछ दूर गए। सागरदत्त उनके साथ जाना चाहता था। परन्तु ज्यों-त्यों उसे समझा कर घर भेजा और कुमार तथा वरधनु दोनों आगे चलने लगे। नगर के बाहर पहुंचे। वहाँ एक उद्यान था / उसमें एक यक्षायतन था। वहाँ एक वृक्ष के नीचे एक रथ खड़ा था। वह शस्त्रों से सज्जित था। उसके पास एक स्त्री बैठी थी। कुमार को देख कर वह उठी और आदर-भाव प्रकट करती हुई बोली-"आप इतने समय बाद कैसे आए ?" यह सुन कुमार ने कहा- "भद्र ! हम कौन हैं ?" उसने कहा-"स्वामिन् ! आप ब्रह्मदत्त और वरधनु हैं।" कुमार ने कहा--"तुमने यह कैसे जाना?" उसने कहा- "सुनो ! इसी नगरी में धनप्रवर नाम का सेठ रहता है। उसकी पत्नी का नाम धनसंचया है। उसके आठ पुत्र हैं। मैं उसकी नौवीं सन्तान हूँ। मैं युवती हुई। मुझे कोई पुरुष पसन्द नहीं आया। तब मैंने इस यक्ष की आराधना प्रारम्भ की। यक्ष भी मेरी भक्ति से संतुष्ट हुआ। वह सामने आ बोला-बेटी ! भविष्य में होने वाला चक्रवर्ती ब्रह्मदत्त कुमार तुम्हारा पति होगा। मैंने पूछा-'मैं उसे कैसे जान सकेंगी ?' यक्ष ने कहा-'बुद्धिल्ल और सागरदत्त के कुक्कुट-युद्ध में जिस पुरुष को देख कर तुम्हें आनन्द हो, उसे ही ब्रह्मदत्त जान लेना।' उसने मुझे जो बताया, वह सब यहाँ मिल गया। मैंने जो हार आदि भेजा, वह आप जानते ही हैं।". यह सुन कर कुमार उसमें अनुरक्त हो गया। वह उसके साथ रथ पर आरूढ़ हुआ और उससे पूछा- "हमें कहाँ जाना चाहिए ?" रत्नवती ने कहा"मगधपुर में मेरे चाचा सेठ धनसार्थवाह रहते हैं। वे हमारा वृत्तान्त जान कर हमारा आगमन अच्छा मार्नेगे / अतः आप वहीं चलें, उसके बाद जहाँ आपकी इच्छा हो।" . रत्नवती के वचनानुसार कुमार मगधपुर की ओर चल पड़ा। वरधनु को सारथी बनाया। ग्रामानुग्राम चलते हुए वे कौशाम्बी जनपद को पार कर गए। आगे चलते हए वे एक गहन जंगल में जा पहुंचे। वहाँ कंटक और सुकंटक नाम के दो चोर-सेनापति रहते थे। उन्होंने रथ और उसमें बैठी हुई अलंकृत स्त्री को देखा। उन्होंने यह भी जान लिया कि रथ में तीन ही व्यक्ति हैं / वे सज्जित होकर आए और उन पर प्रहार करने लगे।
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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