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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 'ऐसा नाटक उसने पहले भी कहीं देखा है।' वह इस चिन्तन में लीन हुआ और उसे पूर्वजन्म को स्मृति हो आई। उसने जान लिया कि ऐसा नाटक मैंने सौधर्म देवलोक में पद्मगुल्म नामक विमान में देखा था। इसकी स्मृति मात्र से वह मूच्छित हो कर भूमि पर गिर पड़ा। पास में बैठे हुए सामन्त उठे, चन्दन का लेप किया। राजा की चेतना लौट आई / सम्राट् आश्वस्त हुआ। पूर्वजन्म के भाई की याद सताने लगी। उसकी खोज करने के लिए उसने एक मार्ग ढूँढ़ा। रहस्य को छिपाते हुए सम्राट ने महामात्य वरधनु से कहा-"आस्व दासौ मृगौ हंसो, मातङ्गावमरौ तथा"—इस श्लोकार्द्ध को सब जगह प्रचारित करो और यह घोषणा करो कि इस श्लोक की पूर्ति करने वाले को सम्राट अपना आधा राज्य देगा। प्रतिदिन यह घोषणा होने लगी। यह अर्द्ध श्लोक दूर-दूर तक प्रसारित हो गया और व्यक्ति-व्यक्ति को कण्ठस्थ हो गया। इधर चित्र का जीव देवलोक से च्युत हो कर पुरिमताल नगर में एक इभ्य सेठ के घर जन्मा। युवा हुआ। एक दिन पूर्व-जन्म की स्मृति हुई और वह मुनि बन गया / एक बार ग्रामानुग्राम विहार करते हुए वहीं काम्पिल्यपुर में आया और मनोरम नाम के कानन में ठहरा। एक दिन वह कायोत्सर्ग कर रहा था। उसी समय रहंट को चलाने वाला एक व्यक्ति वहाँ बोल उठा 'आस्व दासौ मृगौ हंसौ, मातङ्गावमरौ तथा / ' मुनि ने यह सुना और उसके आगे के दो चरण पूरा करते हुए कहा'एषा नौः षष्ठिका जातिः, अन्योन्याभ्यां वियुक्तयोः // ' रहंट चलाने वाले उस व्यक्ति ने उन दोनों चरणों को एक पत्र में लिखा और आधा राज्य पाने की खुशी में वह दौड़ा-दौड़ा राज-दरबार में पहुंचा। सम्राट की अनुमति प्राप्त कर वह राज्य सभा में गया और एक ही साँस में पूरा श्लोक सम्राट को सुना डाला / उसे सुनते ही सम्राट् स्नेहवश मूच्छित हो गए। सारी सभा क्षुब्ध हो गई। सभासद् क्रुद्ध हुएं और उसे पीटने लगे। उन्होंने कहा- "तू ने सम्राट को मूच्छित कर दिया। यह कैसी तेरी श्लोक-पूर्ति ?" मार पड़ी, तब वह बोला- "मुझे मत मारो। श्लोक की पूर्ति मैंने नहीं की है।" "तो किसने की है ?'-सभासदों ने पूछा / वह बोला-"मेरे रहंट के पास खड़े एक मुनि ने की है।" अनुकूल उपचार पा कर सम्राट सचेतन हुआ। सारी बात की जानकारी प्राप्त की और वह मुनि के दर्शन के लिए सपरिवार चल पड़ा। कानन में पहुंचा। मुनि को देखा। वन्दना कर विनयपूर्वक उनके १-सुखबोधा, पत्र 1851197
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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