SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 315
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन .. .. वहाँ से चले / एक पहाड़ पर इसी विचार से चढ़े। ऊपर चढ़ कर उन्होंने देखा कि एक . श्रमण ध्यान-लीन है। वे साधु के पास आए और बैठ गए। ध्यान पूर्ण होने पर साधु ने उनका नाम-धाम पूछा। दोनों ने अपना पूर्व वृत्तान्त कह सुनाया। मुनि ने कहा"तुम अनेक कला-शास्त्रों के पारगामी हो। आत्म-हत्या करना नीच व्यक्तियों का काम है। तुम्हारे जैसे विमल-बुद्धि वाले व्यक्तियों के लिए वह उचित नहीं / तुम इस विचार को छोड़ो और जिन-धर्म की शरण में आओ। इससे तुम्हारे शारीरिक और मानसिक सभी दुःख उच्छिन्न हो जाएंगे।" उन्होंने मुनि के वचन को शिरोधार्य किया और हाथ जोड़ कर कहा- "भगवन् ! आप हमें दीक्षित करें।" मुनि ने उन्हें योग्य समझ दीक्षा दी। मुरु-चरणों की उपासना करते हुए वे अध्ययन करने लगे। कुछ समय बाद वे गीतार्थ हुए। विचित्र तपस्याओं से प्रात्मा को भावित करते हुए वे ग्रामानुग्राम विहार करने लगे / एक बार वे हस्तिनापुर आए / नगर के बाहर एक उद्यान में ठहरे / एक दिन मास-क्षमण का पारणा करने के लिए मुनि सम्भूत नगर में गए। भिक्षा के लिए वे घर-घर घूम रहे थे। मंत्री नमुचि ने उन्हें देख कर पहचान लिया। उसकी सारी स्मृतियाँ सद्यस्क हो गई। उसने सोचा-'यह मुनि मेरा सारा वृत्तान्त जानता है। यहाँ के लोगों के समक्ष यदि इसने कुछ कह डाला तो मेरी महत्ता नष्ट हो जाएगी।' ऐसा विचार कर उसने लाठी और मुक्कों से मार कर मुनि को नगर से बाहर निकालना चाहा / कई लोग मुनि को पीटने लगे। मुनि शान्त रहे / परन्तु लोग जब अत्यन्त उग्र हो गए, तब मुनि का चित्त अशान्त हो गया। उनके मुँह से धुंआ निकला और सारा नगर अन्धकारमय हो गया। लोग घबड़ाए / अब वे मुनि को शान्त करने लगे। चक्रवर्ती सनत्कुमार भी वहाँ आ पहुंचा। उसने मुनि से प्रार्थना की—“भन्ते ! यदि हम से कोई त्रुटि हुई हो तो आप क्षमा करें। आगे हम ऐसा अपराध नहीं करेंगे। आप महान् हैं। नगर-निवासियों को जीवन-दान दें।" इतने से मुनि का क्रोध शान्त नहीं हुआ। उद्यान में बैठे मुनि चित्र ने यह सम्वाद सुना और आकाश को धूम्र से आच्छादित देखा। वे तत्काल वहाँ आए और उन्होंने मुनि सम्भूत से कहा- "मुने ! क्रोधानल को उपशान्त करो, उपशान्त करो। महर्षि उपशम-प्रधान होते हैं। वे अपराधी पर भी क्रोध नहीं करते। तुम अपनी शक्ति का संवरण करो।" मुनि सम्भूत का मन शान्त हुआ। उन्होंने तेजोलेश्या का संवरण किया। अंधकार मिट गया। लोग प्रसन्न हुए। दोनों मुनि उद्यान में लौट गए। उन्होंने सोचा-'हम काय-संलेखना कर चुके हैं, इसलिए अब अनशन करना चाहिए।' दोनों ने बड़े धैर्य के साथ अनशन ग्रहण किया। ___ चक्रवर्ती सनत्कुमार ने जब यह जाना कि मंत्री नमुचि के कारण ही सभी लोगों को संत्रास सहना पड़ा है तो उसने मंत्री को बाँधने का आदेश दिया। मंत्री को रस्सों से बाँध कर मुनियों के पास लाए। मुनियों ने राजा को समझाया और उसने मंत्री को
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy