________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 285 था भूतदत्त / वह बहुत समृद्ध था। वे दोनों हंस मर कर उसके पुत्र हुए। उनका नाम चित्र और सम्भूत रखा गया। दोनों भाइयों में अपार स्नेह था। ___ उस समय वाराणसी नगरी में शङ्ख राजा राज्य करता था। नमुचि उसका मंत्री था। एक बार उसके किसी अपराध पर राजा क्रुद्ध हो गया और वध की आज्ञा दे दी। चाण्डाल भूतदत्त को यह कार्य सौंपा गया। उसने नमुचि को अपने घर में छिपा लिया और कहा--"मंत्रिन् ! यदि आप मेरे तल-घर में रह कर मेरे दोनों पुत्रों को अध्यापन कराना स्वीकार कर लें तो मैं आपका वध नहीं करूंगा।" जीवन की आशा से मंत्री ने बात मान ली। अब वह चाण्डाल के पुत्रों-चित्र और सम्भूत को पढ़ाने लगा। चाण्डाल-पत्नी नमुचि की परिचर्या करने लगी। कुछ काल बीता। नमुचि चाण्डालस्त्री में आसक्त हो गया। भूतदत्त ने यह बात जान ली। उसने नमुचि को मारने का विचार किया। चित्र और सम्भूत दोनों ने अपने पिता के विचार जान लिए / गुरु के प्रति कृतज्ञता से प्रेरित हो उन्होंने नमुचि को कहीं भाग जाने की सलाह दी। नमुचि वहाँ से भागा-भागा हस्तिनापुर में आया और चक्रवर्ती सनत्कुमार का मंत्री बन गया। चित्र और सम्भूत बड़े हुए / उनका रूम और लावण्य आकर्षक था। नृत्य और संगीत में वे प्रवीण हुए। वाराणसी के लोग उनकी कलाओं पर मुग्ध थे। एक बार मदन महोत्सव आया। अनेक गायक-टोलियाँ मधुर-राग में अलाप रही थीं और तरुण-तरुणियों के अनेक गण नृत्य कर रहे थे। उस समय चित्र-सम्भूत की नृत्यमण्डली भी वहाँ आ गई। उनका गाना और नृत्य सबसे अधिक मनोरम था। उसे सुन और देख कर सारे लोग उनकी मण्डली की ओर चले आए। युवतियाँ मंत्र-मुग्ध सी हो गई। सभी तन्मय थे। ब्राह्मणों ने यह देखा। मन में ईर्ष्या उभर आई। जातिवाद की आड़ ले वे राजा के पास गए और सारा वृत्तान्त कह सुनाया। राजा ने दोनों मातङ्गपुत्रों को नगर से निकाल दिया। वे अन्यत्र चले गए। कुछ समय बीता। एक बार कौमुदी-महोत्सव के अवसर पर वे दोनों मातङ्ग-पुत्र 'पुनः नगर में आए। वे मुंह पर कपड़ा डाले महोत्सव का आनन्द ले रहे थे। चलतेचलते उनके मुँह से संगीत के स्वर निकल पड़े। लोग अवाक रह गए। वे उन दोनों के पास आए। आवरण हटाते ही उन्हें पहचान गए। उनका रक्त ईर्ष्या से उबल गया। 'ये चाण्डाल-पुत्र हैं'—ऐसा कह कर उन्हें लातों और चाटों से मारा और नगर से बाहर निकाल दिया। वे बाहर एक उद्यान में ठहरे / उन्होंने सोचा धिक्कार है हमारे रूप, यौवन, सौभाग्य और कला-कौशल को ! आज हम चाण्डाल होने के कारण प्रत्येक वर्ग से तिरस्कृत हो रहे हैं। हमारा सारा गुण-समूह दूषित हो रहा है। ऐसा जीवन जीने से लाभ ही क्या ?' उनका मन जीने से ऊब गया। वे आत्म-हत्या का दृढ़ संकल्प ले