________________ 278 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन डाल / सभी निरोग हो जायेंगे।" इतना कह वह ऊपर उठ कर हिमालय ही चला गया। उसने भी उस प्याले को सिर पर ले "मुझे अमृतोषध मिला है।" कहते हुए घर जाकर पहले पुत्र के मुँह में डाली। यक्ष भाग गया। उसने धूली पोंछते हुए उठ कर पूछा"माँ यह क्या ?" "अपने किये हुए को तू ही जानेगा। आ तात ! अपने दक्षिणा-देने योग्यों का हाल देख / " उसे उन्हें देख कर पश्चात्ताप हुआ। ___तब उसकी माता ने "तात मण्डव्य ! तू मूर्ख है। दान देने के महा-फल स्थान को नहीं पहचानता है। इस तरह के लोग दान-देने योग्य नहीं होते / अब से इन दुश्शीलों को दान मत दे। शीलवानों को दे / " कह ये गाथाएं कहीं मण्डव्य बालोसि परित्तपञ्जो यो पुञखेत्तानं अकोविदो सि, महक्कसावेसु ददासि दानं किलिट्ठ कम्मेसु असञतेसु // 21 // जटा च केसा अजिनानि वत्था जरूदपानं व मुखं परूलहं, पज इमं पस्सथ रूम्मरूपिं न जटाजिनं तायति अप्पपलं // 22 // येसं रागो च दोसो च अविज्जा च विराजिता खीणासवा अरहन्तो तेसु दिन्नं महप्फल // 23 // [हे मण्डव्य ! तू अल्प-बुद्धि है। तू मूर्ख है / तू पुण्य-क्षेत्र नहीं पहचानता है। तू असंयत चित्त-मैल धारी, महान दोषियों को दान देता है। कुछ लोगों की जटाये हैं, केश हैं, अजिनचर्म के वस्त्र हैं, मुँह पुराने कुएं के समान बालों से भरा है। इन चीथड़ेधारी लोगों को देखो। अल्प-प्रज्ञ आदमी की जटा और अजिनचर्म से मोक्ष नहीं होता। जिनके राग, द्वेष तथा अविद्या जाती रही हैं, जो क्षीणास्रव हैं, जो अरहत हैं उन्हें देने में महान् फल है।] इसलिए तात ! अब से इस प्रकार के उपशीलों को दान न दे। लोक में जो आठ समापत्ति-लाभी तथा पञ्च अभिज्ञा प्राप्त धार्मिक श्रमण ब्राह्मण हैं तथा प्रत्येक बुद्ध हैं, उन्हें दान दे। तात! आ अपने कुल के निकटस्थ लोगों को अमृत पिला निरोग करूंगी।" यह कह उसने जूठी काँजी मंगवाई और पानी की चाटी में मिलवा सोलह हजार ब्राह्मणों के मुंह पर छिड़कवाया। एक-एक जना धूली पोंछता हुआ उठ खड़ा हुआ। - ब्राह्मणों ने उन्हें अब्राह्मण बना दिया-इन्होंने चाण्डाल का जूठा पिया है / वे लज्जित होकर वाराणसी से निकले और मेद-राष्ट्र में जा मेद राजा के पास रहने लगे। मण्डव्य वहीं रहने लगा।