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________________ खण्ड 2, प्रकरण : 1 कथानक संक्रमण 265 (चुडैल) सा, गले में संकर-दूष्य (उकुरडी से उठाया हुआ चिथड़ा) डाले हुए वह कौन आ रहा है ? "ओ अदर्शनीय मूर्ति ! तुम कौन हो ? किस आशा से यहाँ आए हो ? अधनंगे तुम पांशु-पिशाच (चुडैल) से लग रहे हो / जाओ, आँखों से परे चले जाओ ! यहाँ क्यों खड़े हो ?" ___ उस समय महामुनि हरिकेशबल की अनुकम्पा करने वाला तिन्दुक ( आबनूस) वृक्ष का वासी यक्ष अपने शरीर का गोपन कर मुनि के शरीर में प्रवेश कर इस प्रकार बोला__"मैं श्रमण हूँ, संयमी हूँ, ब्रह्मचारी हूँ, धन व पचन-पाचन और परिग्रह से विरत हूँ। यह भिक्षा का काल है / मैं सहज निष्पन्न भोजन पाने के लिए यहाँ आया हूँ। ___"आपके यहाँ पर यह बहुत सारा भोजन दिया जा रहा है, खाया जा रहा है और भोगा जा रहा है। मैं भिक्षा-जीवी हूँ, यह आपको ज्ञात होना चाहिए। अच्छा ही है कुछ बचा भोजन इस तपस्वी को मिल जाए।" सोमदेव ने कहा-"यहाँ जो भोजन बना है, वह केवल ब्राह्मणों के लिए ही बना है / वह एक-पाक्षिक है-अब्राह्मण को अदेय है। ऐसा अन्न-पान हम तुम्हें नहीं देंगे, फिर यहाँ क्यों खड़े हो ?" ___ यक्ष ने कहा-"अच्छी उपज की आशा से किसान जैसे स्थल (ऊँची भूमि) में बीज वोते हैं, वैसे ही नीची भूमि में बोते हैं। इसी श्रद्धा से (अपने आपको निम्न भूमि और मुझे स्थल तुल्य मानते हुए भी तुम) मुझे दान दो, पुण्य की आराधना करो। यह क्षेत्र है, बीज खाली नहीं जाएगा।" सोमदेव ने कहा- "जहाँ बोए हुए सारे के सारे बीज उग जाते हैं, वे क्षेत्र इस लोक में हमें ज्ञात हैं। जो ब्राह्मण जाति और विद्या से युक्त हैं, वे ही पुण्य क्षेत्र हैं।" - यक्ष ने कहा- "जिनमें क्रोध है, मान है, हिंसा है, झूठ है, चोरी है और परिग्रह है—वे ब्राह्मण जाति-विहीन, विद्या-विहीन और पाप-क्षेत्र हैं। "हे ब्राह्मणो ! इस संसार में तुम केवल वाणी का भार ढो रहे हो। वेदों को पढ़ कर भी उनका अर्थ नहीं जानते। जो मुनि उच्च और नीच घरों में भिक्षा के लिए जाते हैं, वे ही पुण्य-क्षेत्र हैं।" सोमदेव ने कहा-"ओ ! अध्यापकों के प्रतिकूल बोलने वाले साध ! हमारे समक्ष तू क्या बढ़-बढ़ कर बोल रहा है ? हे निर्ग्रन्थ ! यह अन्न-पान भले ही सड़ कर नष्ट हो जाए, किन्तु तुझे नहीं देंगे।" 4
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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