________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ... यक्ष ने कहा-"मैं समितियों से समाहित, गुप्तियों से गुप्त और जितेन्द्रिय हूँ। यह एषणीय (विशुद्ध) आहार यदि तुम मुझे नहीं दोगे, तो इन यज्ञों का आज तुम्हें क्या लाभ होगा ?" ... सोमदेव ने कहा-"यहाँ कौन है क्षत्रिय, रसोइया, अध्यापक या छात्र, जो डण्डे और फल से पीट, गलहत्था दे इस निर्ग्रन्थ को यहाँ से बाहर निकाले ?' . ___ अध्यापकों का वचन सुन कर बहुत से कुमार उधर दौड़े। वहाँ आ डण्डों, बेंतों और चाबुकों से उस ऋषि को पीटने लगे। - राजा कौशलिक की सुन्दर पुत्री भद्रा यज्ञ-मण्डप में मुनि को प्रताड़ित होते देख क्रुद्ध कुमारों को शान्त करने लगी। - भद्रा ने कहा- "राजाओं और इन्द्रों से पूजित यह वह ऋषि है, जिसने मेरा त्याग किया। देवता के अभियोग से प्रेरित होकर राजा द्वारा मैं दी गई, किन्तु जिसने मुझे मन से भी नहीं चाहा। "यह वही उग्र तपस्वी, महात्मा, जितेन्द्रिय, संयमी और ब्रह्मचारी है, जिसने मुझे मेरे पिता राजा कौशलिक द्वारा दिए जाने पर भी नहीं चाहा। , "यह महान् यशस्वी है। महान् अनुभाग (अचिन्त्य-शक्ति) से सम्पन्न है / घोर व्रती है। घोर पराक्रमी है। इसकी अवहेलना मत करो, यह अवहेलनीय नहीं है। कहीं यह अपने तेज से तुम लोगों को भस्मसात् न कर डाले ?" - सोमदेव पुरोहित की पत्नी भद्रा के सुभाषित वचनों को सुन कर यक्षों ने ऋषि का वयावृत्त्य (परिचर्या) करने के लिए कुमारों को भूमि पर गिरा दिया। - वे घोर रूप वाले यक्ष आकाश में स्थिर होकर उन छात्रों को मारने लगे। उनके शरीरों को क्षत-विक्षत और उन्हें रुधिर का वमन करते देख भद्रा फिर कहने लगी- "जो इस भिक्षु का अपमान कर रहे हैं, वे नखों से पर्वत खोद रहे हैं, दाँतों से लोहे को चबा रहे हैं और पैरों से अग्नि को प्रताड़ित कर रहे हैं। __ "यह महर्षि आशीविष-लब्धि से सम्पन्न है। उन तपस्वी है। घोर व्रती और घोर पराक्रमी है / जो भिक्षा के समय भिक्षु का वध कर रहे हैं, वे पतंग-सेना की भाँति अग्नि में झंपापात कर रहे हैं। "यदि तुम जीवन और धन चाहते हो तो सब मिल कर सिर झुका कर इस मुनि की शरण में आओ / कुपित होने पर यह समूचे संसार को भस्म कर सकता है।" उन छात्रों के सिर पीठ की ओर झुक गए। उनकी भुजाएँ फैल गई। वे निष्क्रिय हो गए। उनकी आँखें खुली की खुली रह गई। उनके मुंह से रुधिर निकलने लगा। उनके मुँह ऊपर को हो गए। उनकी जीभै ओर नेत्र बाहर निकल आएं।