________________ खण्ड 1, प्रकरण : २-कर्मवाद और लेश्या 251 (11) आयु-लेश्या के प्रारम्भिक और अन्तिम समय में आयु शेष नहीं होता, __किन्तु मध्यकाल में वह शेष होता है। यह नियम सब लेश्याओं के लिए समान है। तत्त्वार्थ राजवार्तिक ( पृ० 238 ) में लेश्या पर सोलह दृष्टियों से विचार किया गया है (1) निर्देश (5) कर्म (6) साधन (13) काल (2) वर्ण (6) लक्षण (10) संख्या (14) अन्तर (3) परिणाम (7) गति (11) क्षेत्र (15) भाव (4) संक्रम (8) स्वामित्व (12) स्पर्शन (16) अल्प-बहुत्व भगवती, प्रज्ञापना आदि आगमों में तथा उत्तरवर्ती ग्रन्थों में लेश्या का जो विशद विवेचन किया गया है, उसे देख कर सहज ही यह विश्वास होता है कि जैन-आचार्य लेश्या-सिद्धान्त की प्रस्थापना के लिए दूसरे सम्प्रदायों के ऋणी नहीं हैं। ___ मनुष्य का शरीर पौद्गलिक है / जो पौद्गलिक होता है, उसमें रंग अवश्य होते हैं। इसीलिए संभव है कि रंगों के आधार पर वर्गीकरण करने की प्रवृत्ति चली। महाभारत में चारों वर्गों के रंग भिन्न-भिन्न बतलाए गए हैं / जैसे—ब्राह्मणों का रंग श्वेत, क्षत्रियों का लाल, वैश्यों का पीला और शूद्रों का काला / ' . जैन-साहित्य में चौबीस तीर्थङ्करों के भिन्न-भिन्न रंग बतलाए गए हैं। पद्मप्रभ और वासुपूज्य का रंग लाल, चन्द्रप्रभ और पुष्पदन्त का रंग श्वेत, मुनि सुव्रत और अरिष्टनेमि का रंग कृग, मल्लि और पार्श का रंग नील तया शेष सोलह तीर्थङ्करों का रंग सुनहला था। १-उत्तराध्ययन, 34158-60 / २-महाभारत, शान्तिपर्व, 2885 : गाह्मणानां सितोवर्णः, क्षत्रियाणां तु लोहितः / वैश्यानां पीतको वणः, शूद्राणामसितस्तथा // ३-अमिधान चिन्तामणि, 1149 /