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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन ___ रंगों से प्राणि-जगत् प्रभावित होता है, इस सत्य की ओर जितने संकेत मिलते हैं, उनमें लेश्या का विवरण सर्वाधिक विशद और सुव्यवस्थित है। लेश्या की परिभाषा और वर्गीकरण का आधार ____ मन के परिणाम अशुद्ध और शुद्ध-दोनों प्रकार के होते हैं। उनके निमित्त भी शुद्ध और अशुद्ध-दोनों प्रकार के होते हैं। निमित्त प्रभाव डालते हैं और मन के परिणाम उनसे प्रभावित होते हैं। इस प्रकार इन दोनों का पारस्परिक सम्बन्ध है। इसीलिए इन दोनों को 'लेश्या'—निमित्त को द्रव्य-लेश्या और मन के परिणाम को भावलश्या-कहा गया है। निमित बनने वाले पुदगल हैं, उनमें वर्ण भी है, गंध भी है, रस और स्पर्श भी है, फिर भी उनका नामकरण वर्ण के आधार पर हुआ है। मानसिक विचारों की अशुद्धि और शुद्धि को कृष्ण और शुक्लवर्ण के द्वारा अभिव्यक्ति दी जाती रही है। इसका कारण यह हो सकता है कि गंध आदि की अपेक्षा वर्ण मन को अधिक प्रभावित करता है। कृष्ण, नील और कापोत-ये तीन रंग अशुद्ध माने गए हैं। इनसे प्रभावित होने वाली लेश्याएं भी इसी प्रकार विभक होती हैं। कृष्ण, नील और कापोत-ये तीन अधर्म लेश्याएं हैं / तेजस्, पद्म और शुक्ल-ये तीन धर्म लेश्याएं हैं। अशुद्धि और शुद्धि के आधार पर छह लेश्याओं का वर्गीकरण, इस प्रकार है(१) कृष्णलेश्या अशुद्धतम क्लिष्टतम (2) नीललेश्या अशुद्धतर क्लिष्टतर (3) कापोतलेश्या अशुद्ध क्लिष्ट (4) तेजसलेश्या शुद्ध-. अक्लिष्ट (5) पद्मलेश्या शुद्धतर अक्लिष्टतर (6) शुक्ललेश्या शुद्धतम अक्लिष्टतम इस अशुद्धि और शुद्धि का आधार केवल निमित्त नहीं है। निमित्त और उपादान दोनों मिल कर किसी स्थिति का निर्माण करते हैं। अशुद्धि का उपादान है-कषाय की तीव्रता और उसके निमित्त हैं-कृष्ण, नील और कापोत रंग वाले पुद्गल / शुद्धि का उपादान है—कषाय को मन्दता और उसके निमित्त हैं-रक्त, पीत और श्वेत रंग वाले पुद्गल / उत्तराध्ययन (34 // 3) में लेश्या का ग्यारह प्रकार से विचार किया गया है १-उत्तराध्ययन, 34 // 56 / २-बही, 34157 / ३-वही, 34 / 3 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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