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________________ 242 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन कर सकते हैं और जटिलताओं से भी बच जाते हैं, जो ईश्वरीय-सृष्टि की व्याख्या में उत्पन्न होती हैं। लेश्या : चेतन और अचेतन के संयोग का माध्यम जितने स्थूल परमाणु स्कन्ध होते हैं, वे सब प्रकार के रंगों और उपरंगों से युक्त होते हैं। मनुष्य का शरीर स्थूल-स्कन्ध है, इसलिए वह भी सब रंगों से युक्त है। वह रंगीन है, इसीलिए बाह्य रंगों से प्रभावित होता है। उनका प्रभाव मनुष्य के मन पर भी पड़ता है। इस प्रभाव-शक्ति के आधार पर भगवान् महावीर ने सब प्राणियों के शरीरों और विचारों को छह वर्गों में विभक्त किया। उस वर्गीकरण को 'लेश्या' कहा जाता है (1) कृष्णलेश्या, (3) कापोतलेश्या, (5) पद्मलेश्या और (2) नीललेश्या, (4) तेजोलेश्या, (6) शुक्ललेश्या / डॉ० हर्मन जेकोबी के अभिमत की समीक्षा ___ डॉ० हर्मन जेकोबी ने लिखा है-"जैनों के लेश्या के सिद्धान्त में और गोशालक के मानवों को छह भागों में विभक्त करने वाले सिद्धान्त में समानता है। इसे पहले पहल प्रो० ल्यूमेन ने पकड़ा, किन्तु इस विषय में मेरा विश्वास है कि जैनों ने यह सिद्धान्त आजीवकों से लिया और उसे परिवर्तित कर अपने सिद्धान्तों के साथ समन्वित कर दिया।" ____ मानवों का छह भागों में विभाजन गोशालक के द्वारा नहीं, किन्तु पूरणकश्यप के द्वारा किया गया था। पता नहीं प्रो० ल्यूमेन और डॉ० हर्मन जेकोबी ने उसे 'गोशालक के द्वारा किया हुआ मानवों का विभाजन' किस आधार पर माना ? पूरणकश्यप बौद्ध-साहित्य में उल्लिखित छह तीर्थङ्करों में से एक हैं। उन्होंने रंगों के आधार पर छह अभिजातियाँ निश्चित की थों (1) कृष्णाभिजाति- क्रूर कर्म वाले सौकरिक, शाकुनिक आदि जीवों का वर्ग, (2) नीलाभिजाति- बौद्ध भिक्षु तथा कुछ अन्य कर्मवादी, क्रियावादी भिक्षुओं का वर्ग, (3) लोहिताभिजाति- एकशाटक निर्ग्रन्थों का वर्ग, (4) हरिद्राभिजाति- श्वेत वस्त्रधारी या निर्वस्त्र, (5) शुक्लाभिजाति- आजीवक श्रमण-श्रमणियों का वर्ग और 1-Sacred Books of the East, Vol. XLV, Introduction. p. XXX. २-अंगुत्तरनिकाय, 6 / 6 / 3, भाग 3, पृ० 93 / ३-दीघनिकाय, 112, पृ० 16,20 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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