________________ खण्ड 1, प्रकरण : 6 2 -कर्मवाद और लेश्या 243 (6) परमशक्लाभिजाति- आजीवक आचार्य नन्द, वत्स, कृश, सांकृत्य, मस्करी गोशालक आदि का वर्ग।' आनन्द ने गौतम बुद्ध से इन छह अभिजातियों के विषय में पूछा तो उन्होंने इसे 'अव्यक्त व्यक्ति द्वारा किया हुप्रा प्रतिपादन' कहा। इस वर्गीकरण का मुख्य आधार अचेलता है / इसमें वस्त्रों के अल्लीकरण या पूर्णत्याग के आधार पर अभिजातियों की श्रेष्ठता का प्रतिपादन किया गया है। गौतम बुद्ध ने प्रानन्द से कहा-"मैं भी छह अभिजातियों को प्रज्ञापना करता हूँ(१) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक ( नीच कुल में उत्पन्न ) हो, कृष्ण-धर्म ( पाप ) __करता है। (2) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो, शुक्ल-धर्म करता है / (3) कोई पुरुष कृष्णाभिजातिक हो, अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण को पैदा करता है। (4) कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक (ऊँचे कुल में उत्पन्न ) हो, शुक्ल-धर्म ( पुण्य ) करता है। (5) कोई पुरुष शुक्लांभिजातिक हो, कृष्ण-धर्म करता है। (6) कोई पुरुष शुक्लाभिजातिक हो, अकृष्ण-अशुक्ल निर्वाण को पैदा करता है।" यह वर्गीकरण जन्म और कर्म के आधार पर किया हुआ है। इसमें चाण्डाल, निषाद, आदि जातियों को 'शुक्ल' कहा गया है। कायिक, वाचिक और मानसिक दुश्चरण को 'कृष्ण-धर्म' और उनके सुचरण को 'शुक्ल-धर्म' कहा गया है। निर्वाण न कृष्ण है और न शुक्ल / इस वर्गीकरण का ध्येय यह है कि नीच जाति में उत्पन्न व्यक्ति भी शुक्ल-धर्म कर सकता है और उच्च कुल में उत्पन्न व्यक्ति कृष्ण-धर्म भी करता है / धर्म और निर्वाण का सम्बन्ध जाति से नहीं है। .. छह अभिजातियों के इन दोनों वर्गीकरणों का लेश्या के वर्गीकरण से कोई सम्बन्ध नहीं है। वह सर्वथा स्वतंत्र है। लेश्याओं का सम्बन्ध एक-एक व्यक्ति से है। विचारों को प्रभावित करने वाली लेश्याएं एक व्यक्ति के एक ही जीवन में काल-क्रम से छहों हो सकती हैं। लेश्या का वर्गीकरण छह अभिजातियों की अपेक्षा महाभारत के वर्गीकरण के अधिक निकट है। सनत्कुमार ने दानवेन्द्र वृत्रासुर से कहा-"प्राणियों के वर्ण छह प्रकार के हैं(१) कृष्ण, (2) धूम्र, (3) नील, (4) रक्त, (5) हारिद्र और (6) शुक्ल / इनमें से १-अंगुत्तरनिकाय, 6 / 6 / 3, भाग 3, पृ० 35-63,94 / २-(क) अंगुत्तरनिकाय, 6 / 6 / 3, भाग 3, पृ० 63-94 / (ख) दीघनिकाय, 3 / 10, पृ० 295 /