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________________ 230 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन चर्चा हुई है / जैन-आगमों में मूर्त और अमूर्त के स्थान पर रूपी और अरूपी का प्रयोग अधिक मिलता है / इनकी चर्चा भी जितने विस्तार से उनमें हुई है, उतनी अन्यत्र प्राप्त नहीं है / रूपी और अरूपी की सामान्य परिभाषा यह है कि जिस द्रव्य में वर्ण, गन्ध, स्पर्श और संस्थान हों, वह रूपी है और जिसमें ये न हों वह अरूपी है / जीव अरूपी है इसलिए भगु-पुत्रों ने अपने पिता से कहा था-"जीव अमूर्त होने के कारण इन्द्रियों द्वारा ग्राह्य नहीं है।" 2 अजीव के प्रथम चार प्रकार अरूपी हैं। पुद्गल रूपी हैं। अरूपी जगत् जनसाधारण के लिए अगम्य है। उसके लिए जो गम्य है, वह पुद्गल जगत् है। उसके चार प्रकार हैं-स्कन्ध, देश, प्रदेश और परमाणु / 4 परमाणु पुद्गल की सबसे छोटी इकाई है / उससे छोटा कुछ भी नहीं है / स्कन्ध उनके समुदाय का नाम है / देश और प्रदेश उसके काल्पनिक विभाग हैं / पुदगल की वास्तविक इकाई परमाणु ही है। परमाणु सूक्ष्म होते हैं, इसीलिए वे रूपी होने पर भी हमारे लिए दृश्य नहीं हैं / इसी प्रकार उनके सूक्ष्म-स्कन्ध भी हमारे लिए अदृश्य हैं। हमारे लिए वही रूपी जगत् दृश्य है, जो स्थूल है। परमाणुवाद जैन-आगमों में परमाणुओं के विषय में अत्यन्त विस्तृत चर्चा की गई है। यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि आगमों का आधा भाग परमाणुओं की चर्चा से सम्बन्धित है। उनके विषय में जैन-दर्शन का एक विशेष दृष्टिकोण है। उसका अभिमत है कि इस संसार में जितना सांयोगिक परिवर्तन होता है, वह परमाणुओं के आपसी संयोग-वियोग और जीव और परमाणुओं के संयोग-वियोग से होता है। इसकी विशद चर्चा हम 'कर्मवाद और लेश्या' के प्रकरण में करेंगे। .... शिवदत्त ज्ञानी ने लिखा है-"परमाणुवाद वैशेषिक दर्शन की ही विशेषता है। उसका प्रारम्भ उपनिषदों से होता है। जैन, आजीवक आदि द्वारा भी उसका उल्लेख किया गया है। किन्तु कणाद ने उसे व्यवस्थित रूप दिया।५ ज्ञानीजी का यह प्रतिपादन प्रामाणिक नहीं है। औपनिषदिक दृष्टि के आदान कारण परमाणु नहीं हैं। उसका उपादान ब्रह्म है। १-विष्णुराण, 1 / 22 / 53 / २-उत्तराध्ययन, 14 / 16 / . ३-वही, 36 / 4 / ४-वही, 36 / 10 / ५-भारतीय संस्कृति, पृ० 229 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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