________________ 226 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन पर औषध द्वारा उसका प्रतिकार न करना, इसी साधना की एक कड़ी है।' इस साधना की मृग-मरीचिका से तुलना की गई है। मृगापुत्र और उसके माता-पिता के संवाद से यह लगता है कि रोग का प्रतिकार न करना श्रमणों को सामान्य विधि थो।' किन्तु दूसरे आगमों में रोग-प्रतिकार करने के उल्लेख भी मिलते हैं। हो सकता है प्रारम्भ में रोग-प्रतिकार का निषेध हो और वाद में उसका विधान किया गया हो / यह भी हो सकता है कि देह-निर्ममत्व की विशेष साधना करने वाले मुनियों के लिए चिकित्सा का निषेध हो, सबके लिए नहीं। संभव है मृगा-पुत्र की विशेष साधना की उत्कट इच्छा को ध्यान में रखकर ही माता-पिता ने ऐसा कहा हो। कुछ भी हो, चिकित्सा के विषय में आगमकारों की एकान्त-दृष्टि नहीं रही। ___ बाईस परीषहों, जो स्वीकृत-मार्ग पर स्थिर रहने और आत्म-शृद्धि के लिए सहन करने योग्य होते हैं, में कुछ परीषह सब मुनियों के लिए नहीं है। * कठोर और मृदुचर्या का प्रश्न आपेक्षिक है। एक व्यक्ति को एक स्थिति में जो कठोर लगता है, वही उसको दूसरी स्थिति में मृदु लगने लगता है और जो मृदु लगता है, वह कभी कठोर लगने लगता है। इसी अनुभूति के संदर्भ में मृगा-पुत्र ने कहा था"जिसकी लौकिक प्यास बुझ चुकी है, उसके लिए कुछ भी दुष्कर नहीं है।"3 . १-उत्तराध्ययन, 2 / 32-33 / २-वही, 1975-82 / ३-वही, 19644: इह लोए निप्पिवासस्स नस्थि किंचि वि दुक्करं /