________________ खण्ड 1, प्रकरण :8 श्रामण्य और काय-क्लेश 225 __वस्त्र के विषय में भी महावीर का दृष्टिकोण मध्यममार्गी था। उन्होंने सचेल और अचेल-इन दोनों साधना-पद्धतियों को मान्यता दी / (1) कई मुनि जीवन-पर्यन्त सचेल रहते थे। (2) कई मुनि साधना के प्रारम्भ काल में सचेल रहते और उसके परिपक्व होने पर अचेल हो जाते। (3) कई मुनि कभी सचेल रहते, कभी अचेल / हेमन्त में सचेल रहते और ग्रीष्म में अचेल हो जाते / ' वस्त्र मिलने पर सचेल रहते, न मिलने पर अचेल / ' महावीर ने साधुओं को गणों में संगठित भी किया और अकेले रहने की व्यवस्था भी ई / ' उन्होंने गण में रहने वालों के लिए सेवा और सहयोग को प्रोत्साहन दिया और अकेले रहने वालों के लिए सेवा या सहयोग न लेने की व्यवस्था दी / जो मण्डली-भोजन चाहते थे, उनके लिए वैसी व्यवस्था की और मण्डली-भोजन के प्रत्याख्यान को भी महत्त्व दिया / इस प्रकार साधना की व्यवस्था में उनका दृष्टिकोण अनेकान्तस्पर्शी रहा। कार कुछ उदाहरण प्रस्तुत किए गए हैं जो महावीर के मध्यम-मार्गी दृष्टिकोण पर प्रकाश डालते हैं। महावीर का मुकाव यदि काय-क्लेश की ओर होता तो वे यह कभी नहीं कहते कि जो तप और नियम से भ्रष्ट हैं, वे चिर-काल तक अपने शरीर को क्लेश देकर भी संसार का पार नहीं पा सकते / ' उन्होंने काय-क्लेश को वही स्थान दिया, जो स्थान स्वास्थ्य की प्राप्ति के लिए शल्य-चिकित्सा का है / देहाध्यास वास्तव में हो बहुत गहरा होता है / उसकी जड़ों को उखाड़ फेंकने के लिए एक बार देह के प्रति निर्ममत्व होना होता है। रोग उत्पन्न होने १-आचारांग, 1 / 4 / 5 / . . २-उत्तराध्ययन, 2013 / ३-उत्तराध्ययन, 11 / 14; 17 / 17 / ४-वही, 32 / 5 / ५-वही, 29 / 44 / ६-वही, 29 / 40 / ७-वही, 1135 / ८-वही, 29 // 34 // ६-वही, 2041 / 26