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________________ : उच्छवास 164 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन चतुर्विशस्तव श्लोक चरण (3) पाक्षिक 12 75 (4) चातुर्मासिक 20 125 500 (5) सांवत्सरिक 40 1008 300. 252 1008 चरण . 100 विजयोदया चतुर्विंशस्तव श्लोक उच्छवास (1) देवसिक 4 25 (2) रात्रिक 2 (3) पाक्षिक 12 75 300 300 (4) चातुर्मासिक 16 100 400 . 400 (5) सांवत्सरिक 20 125 500 500 इस प्रकार नेमिचन्द्र और आराजित दोनों आचार्यों की उच्छ्वास संख्या भिन्न रही है। अमितगति श्रावकाचार के अनुसार देवसिक कायोत्सर्ग में 108 तथा रात्रिक कायोत्सर्ग में 54 उच्छवासों का ध्यान किया जाता है और अन्य कायोत्सर्गों में 27 उच्छ्वासों का / 27 उच्छवासों में नमस्कार मंत्र की नौ आवृत्तियाँ की जाती हैं अर्थात् तीन उच्छ्वासों में एक नमस्कार मंत्र पर ध्यान किया जाता है। संभव है प्रयम दो-दो वाक्य एक-एक उच्छ्वास में और पाँचवाँ वाक्य एक उच्छ्वास में / १-मूलाराधना, 11116 विजयोदया वृत्ति : / सायाह्न उच्छ्वासशतकं, प्रत्यूषसि पंचाशत, पशे त्रिंशतानि, चतुर्षु मासेसु चतुःशतानि, पंचशतानि संवतत्सरे उच्छ्वासानाम् // २-अमितगति श्रावकाचार, 8 / 68-69: / अष्टोत्तरशतोच्छ्वासः, कायोत्सर्गः प्रतिक्रमे / सान्ध्ये प्रभातिके वार्धमन्यस्तत् सप्तविंशतिः // सप्तविंशतिरुच्छासाः, संसारोन्मूलनक्षमे / सन्ति पंचनमस्कारे, नवधा चिन्तिते सति //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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