________________ खड 1, प्रकरण : 7 २-योग 165 अमितगति ने एक दिन-रात के कायोत्सर्गों की कुल संख्या अट्ठाईस मानी है।' वह इस प्रकार है (1) स्वाध्याय-काल में 12 (2) वंदना-काल में 6 (3) प्रतिक्रमण-काल में 8 (4) योग-भक्ति-काल में 2 28 पाँच महावतों सम्बन्धी अतिक्रमगों के लिए 108 उच्छवासों का कायोत्सर्ग करने की विधि रही है। कायोत्सर्ग करते समय यदि उच्छ्वासों की संख्या में संदेह हो जाए अथवा मन विचलित हो जाए तो आठ उच्छवासों का अतिरिक्त कायोत्सर्ग करने की विधि रही है / 2 कार के विवरण से सहज ही निष्पन्न होता है कि प्राचीन काल में कायोत्सर्ग मुनि की दिनचर्या का प्रमुख अंग था। उत्तराध्ययन के सामाचारी प्रकरण में भी अनेक बार कायोत्सर्ग करने का उल्लेख है / दशवकालिक चूलिका में मुनि को बार-बार कायोत्सर्ग करने वाला कहा गया है। कायोत्सर्ग का फल ___ कायोत्सर्ग प्रायश्चित्त के रूप में भी किया जाता है, अत: उसका एक फल हैदोष-विशुद्धि / अपने द्वारा किए हुए दोष का हृदय पर भार होता है। कायोत्सर्ग करने से वह हल्का १-अमितगति श्रावकाचार, 8166-67 : अष्टविंशतिसंख्यामाः, कायोत्सर्गा मता जिनः / अहोरात्रगताः सर्वे, षडावश्यककारिणाम् // स्वाध्याये द्वादश प्राज्ञैः, वंदनायां षडीरिताः। अष्टौ प्रतिक्रमे योगभक्तौ तौ द्वावुदाहृतौ // २-मूलाराधना, 2 // 116 विजयोदया वृत्ति : प्रत्यूषसि प्राणिवधादिषु पंचस्वतीचारेषु अप्टशतोच्छवासमात्रकालः कायोत्सर्गः। कायोत्सर्गे कृते यदि शंक्यते उच्छ्वासस्य स्खलनं वा परिणामस्य उच्छ्वा. साष्टकमधिकं स्थातव्यम्। ३-उत्तराध्ययन, 26.38-51 / ४-दशवकालिक, चूलिका 27 : अभिक्खणं काउस्सग्गकारी।