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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 . २-योग 193 कायोत्सर्ग का कालमान चेष्टा कायोत्सर्ग का काल उच्छवास पर आधृत है। विभिन्न प्रयोजनों से वह आठ, पच्चीस, सताईस, तीन सौ, पाँच सौ और एक हजार आठ उच्छवास तक किया जाता है। ____ अभिभव कायोत्सर्ग का काल जघन्यत. अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्टतः एक वर्ष का है। बाहुबलि ने एक वर्ष का कायोत्सर्ग किया था।' दोष-शुद्धि के लिए किए जाने वाले कायोत्सर्ग के पाँच विकल्प होते हैं-(१) देवसिक कायोत्सर्ग, (2) रात्रिक कायोत्सर्ग, (3) पाक्षिक कायोत्सर्ग, (4) चातुर्मासिक कायोत्सर्ग और (5) सांवत्सरिक कायोत्सर्ग। ___ छह आवश्यक हैं, उनमें कायोत्सर्ग पाँचवाँ है। कायोत्सर्ग-काल में चतुर्विंशस्तव (चौबीस तीर्थङ्करों की स्तुति) का ध्यान किया जाता है। उसके सात श्लोक और अट्ठाईस चरण हैं। एक उच्छवास में एक चरण का ध्यान किया जाता है / इस प्रकार एक चतुर्विंशस्तव का ध्यान पच्चीस उच्छवासों में सम्पन्न होता है। प्रवचनसारोद्धार और विजयोदया के अनुसार इनका धेय-परिमाण और कालमान इस प्रकार है प्रवचनसारोद्धार चतुर्विंशस्तब श्लोक चरण उच्छवास (1) देवसिक 2 25 . 100 (2) रात्रिक 4 १-(क) योगशास्त्र, 3 पत्र 250 : तत्र चेटाकायोत्सर्गोऽष्ट-पंचविंशति-सप्तविंशति त्रिशति-पंचशती-अष्टोत्तर सहस्रोच्छवासान् यावद् भवति / अभिभवकायोत्सर्गरतु मुर्तीदारग्य संवत्सरं यावद् बाहुबलरिव भवति / - (ख) मूगराधना, 2 / 116, विजयोदया वृत्ति : ____ अन्तर्मुहूर्तः कायोत्सर्गस्य जघन्यः कालः वर्षमुत्कृष्टः / २-योगशास्त्र, 3 / ३-प्रवचतसारोद्धार, 3 / 183-185 : चत्तारि दो दुवालस, वीस चत्ता य हुँति उज्जोया। देसिय राय पक्खिय, चाउम्मासे य वरिसे य॥ पणवीस अद्धतेरस, सलोग पन्नतरी य बोद्धव्वा / सयमेगं पणवीसं, बे बावण्णा य बरिसंमि // सायं सयं गोसद्धं, तिन्नेव सया हवंति पक्वम्मि। पंच य चाउम्मासे, वरिसे अट्ठोत्तरसहस्सा // 25 50
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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