________________ 182 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन रायसेन ने अधिकारी की दृष्टि से धर्म्य-ध्यान को दो भागों में विभक्त किया हैमुख्य और उपचार / मुख्य धर्म्य-ध्यान का अधिकारी अप्रमत्त ही होता है। दूसरे लोग औपचारिक धर्म्य-ध्यान के अधिकारी होते हैं।' ध्यान की सामग्री (द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव ) के आधार पर भी ध्याता और ध्यान के तीन-तीन प्रकार निश्चित किए गए हैंउत्कृष्ट सामग्री उत्कृष्ट ध्याता उत्कृष्ट ध्यान मध्यम सामग्री मध्यम ध्याता मध्यम ध्यान जघन्य सामग्री जघन्य ध्याता . जघन्य ध्यान धर्म्य-ध्यान का अधिकारी अल्पज्ञानी व्यक्ति हो सकता है, किन्तु वह नहीं हो सकता, जिसका मन अस्थिर हो / ध्यान और ज्ञान का निकट से कोई सम्बन्ध नहीं है। ज्ञान व्यग्र होता है-अनेक आलम्बनों में विचरण करता है और ध्यान एकान होता है-एक आलम्बन पर स्थिर होता है / वस्तुतः 'ध्यान' ज्ञान से भिन्न नहीं है, उसी की. एक विशेष अवस्था है। अपरिस्पन्दमान अग्निशिखा की भाँति जो ज्ञान स्थिर होता है, वही 'ध्यान' कहलाता है। ___ जिसका संहनन वज्र की तरह सुदृढ़ होता है और जो विशिष्ट श्रुत (पूर्व-ज्ञान) का ज्ञाता होता है, वही व्यक्ति शुक्ल-ध्यान का अधिकारी है।५ ____ जैन-आचार्यो का यह अभिमत रहा है कि वर्तमान में शुक्ल-ध्यान के उपयुक्त सामग्री-वज्र-संहनन और ध्यानोपयोगी विशिष्ट-ज्ञान प्राप्त नहीं है। उन्होंने ऐदंयुगीन लोगों को धर्म्य-ध्यान का ही अधिकारी माना है।६ (E) अनुप्रेक्षा- आत्मोपलब्धि के दो साधन हैं-स्वाध्याय और ध्यान / कहा गया है कि स्वाध्याय करो, उससे थकान का अनुभव हो तब ध्यान करो। ध्यान से थकान का अनुभव हो, तब फिर स्वाध्याय करो। इस क्रम से स्वाध्याय और ध्यान के अभ्यास से परमात्मा प्रकाशित हो जाता है।" अनुप्रेक्षा स्वाध्याय का एक अंग है। ध्यान की सिद्धि के लिए अनुप्रेक्षाओं का १-तत्त्वानुसाशन, 47 : २-(क) वही, 48,46 / (ख) ज्ञानार्णव, 28 / 29 / ३-महापुराण, 211102 / ४-सर्वार्थसिद्धि, 9 / 27 ; तत्त्वानुशासन, 49 / ५-ध्यानशतक, 64 / ६-तत्वानुशासन, 36 / ७-वही, 81 /