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________________ उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मकअध्ययन (3) काल- ध्यान के लिए काल की भी कोई एकान्तिक मर्यादा नहीं है। वह सार्वकालिक है-जब भावना हो तभी किया जा सकता है।' ध्यानशतक के अनुसार जब मन को समाधान प्राप्त हो, वही समय ध्यान के लिए उपयुक्त है। उसके लिए दिनरात आदि किसी समय का नियम नहीं किया जा सकता / 2 (4) आसन- ध्यान के लिए शरीर की अवस्थिति का भी कोई नियम नहीं है। जिस अवस्थिति में ध्यान सुलभ हो, उसी में वह करना चाहिए। इस अभिमत के अनुसार ध्यान खड़े, बैठे और सोते- तीनों अवस्थाओं में किया जा सकता है। - 'भू-भाग'-ध्यान किसी ऊँचे आसन या शय्या आदि पर बैठ कर नहीं करना चाहिए। उसके लिए 'भूतल' और 'शिलापट्ट'-ये दो उपयुक्त माने गए हैं। काष्ठपट्ट भी उसके लिए उपयुक्त है। ध्यान के लिए अभिहित आसनों की चर्चा हम 'स्थान-योग' के प्रसंग में कर चुके हैं। समग्रदृष्टि से ध्यान के लिए निम्न अपेक्षाएँ हैं (1) बाधा रहित स्थान, (2) प्रसन्न काल, (3) सुखासन, (4) सम, सरल और तनाव रहित शरीर, . (5) दोनों होठ 'अधर' मिले हुए, (6) नीचे और ऊपर के दाँतों में थोड़ा अन्तर, (7) दृष्टि नासा के अग्न भाग पर टिकी हुई, (8) प्रसन्न मुख, () मुँह पूर्व या उत्तर दिशा की ओर और (10) मंद श्वास-निश्वास / 5 १-महापुराण, 21181 : न चाहोरात्र सन्ध्यादि-लक्षणः कालपर्ययः / नियतोऽस्यास्ति विध्यासोः, तद्ध्यानं सार्वकालिकम् // २-ध्यानशतक, 38 / ३-ध्यानशतक, 39 ; महापुराण, 21175 / / ४-तत्त्वानुशासन, 92 / ५-(क) महापुराण, 21160-64 : (ख) योगशास्त्र, 4 / 135,136 / (ग) पासनाहचरिय, 206 /
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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