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________________ खण्ड 1, प्रकरण : 7 २-योग 176 (1) ज्ञान-भावना- ज्ञान का अभ्यास ; ज्ञान में मन की लीनता, (2) दर्शन-भावना- मानसिक मूढ़ता के निरसन का अभ्यास, (3) चारित्र-भावना- समता का अभ्यास और (4) वैराग्य-भावना- जगत् के स्वभाव का यथार्थ दर्शन, आसक्ति, भय और आकांक्षा से मुक्त रहने का अभ्यास / ' इन भावनाओं के अभ्यास से ध्यान के योग्य मानसिक-स्थिरता प्राप्त होती है। आचार्य जिनसेन ते ज्ञान-भावना के पाँच प्रकार बतलाए हैं-वाचना, प्रच्छना, अनुप्रेक्षा, परिवर्तना और धर्म-देशना। दर्शन-भावना के सात प्रकार बतलाए हैं-संवेग, प्रशम, स्थैर्य, अमूढ़ता, अगर्वता, आस्तिक्य और अनुकम्पा / चारित्र-भावना के नौ प्रकार बतलाए हैं—पाँच समितियाँ, तीन गुप्तियाँ और कष्ट-सहिष्णुता / वैराग्य-भावना के तीन प्रकार बतलाए हैं-विषयों के प्रति अनासक्ति, कायतत्त्व का अनुचिन्तन और जगत् के स्वभाव का विवेचन / 2 . (2) प्रदेश- ध्यान के लिए एकान्त प्रदेश अपेक्षित है। जो जनाकीर्ण स्थान में रहता है, उसके सामने इन्द्रियों के विषय प्रस्तुत होते रहते हैं। उनके सम्पर्क से कदाचित् मन व्याकुल हो जाता है। इसलिए एकान्तवास मुनि के लिए सामान्य मार्ग है, किन्तु जैनआचार्यों ने हर सत्य को अनेकान्त-दृष्टि से देखा, इसलिए उनका यह आग्रह कभी नहीं रहा कि मुनि को एकान्तवासी ही होना चाहिए / भगवान् महावीर ने कहा-“साधना गाँव में भी हो सकती है और अरण्य में भी हो सकती है। साधना का भाव न हो तो वह गाँव में भी नहीं हो सकती और अरण्य में भी नहीं हो सकती।"४ धीर व्यक्ति जनाकीर्ण और विजन दोनों स्थानों में समचित्त रह सकता है। अतः ध्यान के लिए प्रदेश की कोई एकान्तिक मर्यादा नहीं दी जा सकती। अनेकान्त-दृष्टि से विचार किया जाए तो प्रदेश के सम्बन्ध में सामान्य मर्यादा यह है कि ध्यान का स्थान शून्य-गृह, गुफा आदि विजन प्रदेश होना चाहिए / जहाँ मन, वाणी और शरीर को समाधान मिले और जहाँ जीवजन्तुओं का कोई उपद्रव न हो, वह स्थान ध्यान के लिए उपयुक्त है / 6 १-ध्यानशतक, 30 / २-महापुराण 21 / 96-99 / ३-महापुराण, पर्व 21170-80 / ४-आचारांग 18 / 1 / 14 : गामे वा अदुवा रणे, णेव गामे व रणे धम्ममायाणह / ५-ध्यानशतक, 36 / ६-वही, 37 //
SR No.004302
Book TitleUttaradhyayan Ek Samikshatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya, Nathmalmuni
PublisherJain Shwetambar Terapanthi Mahasabha
Publication Year1968
Total Pages544
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & agam_related_other_literature
File Size8 MB
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