________________ 160 उत्तराध्ययन : एक समीक्षात्मक अध्ययन . __स्वादिष्ट भोजन को भी विकृति कहा जाता है।' इसलिए रस-परित्याग करने वाला शाक, व्यञ्जन, नमक आदि का भी वर्जन करता है। मूलाराधना के अनुसार दूध, दही, घृत, तैल और गुड़-इनमें से किसी एक का अथवा इन सबका परित्याग करना रस-परित्याग है तथा उवगाहिम विकृति (मिठाई) पूड़े, पत्र-शाक, दाल, नमक आदि का त्याग भी रस-परित्याग है / रस-परित्याग करने वाले मुनि के लिए निम्न प्रकार के भोजन का विधान है.-- (1) अरस आहार- स्वाद-रहित भोजन। (2) अन्य वेला कृत-- ठण्डा भोजन / (3) शुद्धोदन- शाक आदि से रहित कोरा भात। (4) रूखा भोजन- घृत-रहित भोजन। (5) आचामाम्ल अम्ल-रस-सहित भोजन। . . (6) आयामौदन- जिसमें थोड़ा जल और अधिक अन्न भाग हो, ऐसा आहार अथवा,ओसामण-सहित भात / (7) विकटौदन- बहुत पका हुआ भात अथवा गर्म जल मिला हुआ भात / जो रस-परित्याग करता है, उसके तीन बातें फलित होती हैं - (1) सन्तोष की भावना, (2) ब्रह्मचर्य की आराधना और (3) वैराग्य / (5) काय-क्लेश काय-क्लेश बाह्य-तप का पाँचवाँ प्रकार है। उत्तराध्ययन 2017 में काय-क्लेश १-सागारधर्मामृत, टीका 5 // 35 / २-मूलाराधना, 3 / 215 / ३-वही, 33216 / ४-मूलाराधना अमितगति 217 : संतोषो भावितः सम्यग् , ब्रह्मचर्य प्रपालितम् / दर्शितं स्वस्य वैराग्यं, कुर्वाणेन रसोज्झनम् //